सुधाकर सिंह बिहार की राजनीति का बड़ा नाम नहीं है। पिता और पूर्व मंत्री जगदानंद सिंह से बगावत करके 2010 में रामगढ़ से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे और चुनाव हार गये । माना जाता है कि इनकी हार में इनके पिता की ही बड़ी भूमिका थी। जबकि 2017 में गया स्नातक क्षेत्र निर्वाचन में राजद के प्रत्याशी अपने भाई पुनीत सिंह के पक्ष में प्रचार करने के आरोप में भाजपा ने निलंबित कर दिया। दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक रहे सुधाकर सिंह फिलहाल भाजपा के खिलाफ मुहिम चला रहे हैं और उनका मानना है कि भाजपा से मुकाबले के लिए क्षेत्रीय दलों में आंतरिक लोकतंत्र जरूरी है।
भाजपा से मुकाबले के लिए क्षेत्रीय दलों में जरूरी है आंतरिक लोकतंत्र
सुधाकर सिंह से वीरेंद्र यादव की बातचीत
उन्होंने भाजपा और परिवार आधारित क्षेत्रीय पार्टियों के अंतर का उल्लेख करते हुए कहा कि भाजपा के पास निष्ठावान कार्यकर्ताओं की मजबूत टीम है। बूथ स्तर लेकर पंचायत स्तर तक कार्यकर्ताओं का संगठन है और उनके कार्यों की निगरानी का तंत्र भी है। जबकि क्षेत्रीय पार्टियों के पास नेता है, नेता का परिवार है और वोटर है। बीच में संवाद का कोई संगठित नेटवर्क नहीं है। निर्णय लेने में कोई पारदर्शिता नहीं है। नेता का निर्णय सर्वमान्य होता है। संगठन के नाम पर खड़ा तंत्र सिर्फ नेतृत्व का आदेश वाहक है। निर्णय में संगठन की कोई भूमिका नहीं होती है। पिछले राज्यसभा व विधान सभा चुनाव में राजद व जदयू उम्मीदवारों का चयन इसी बात का प्रमाण है।
सुधाकर ने कहा कि भाजपा भी अब कांग्रेस बन गयी है। इंदिरा गांधी ने भी अपनी सत्ता को बनाये रखने के लिए चुनाव आयोग और न्यायालय का राजनीति हित के लिए इस्तेमाल किया था। भाजपा भी वही कर रही है। उन्होंने कहा कि राजनीति में स्थायित्व के लिए आर्थिक संसाधन और मीडिया दो प्रमुख कारक हैं। दोनों ही कांग्रेस और भाजपा के साथ ही हैं। आर्थिक रूप से बड़े घराने इन्हीं दो पार्टियों का व्यापक स्तर पर आर्थिक पृष्ठपोषण करते हैं और मीडिया का बड़ा हिस्सा तथा ढांचा इन्हीं दो पार्टियों के हितों का पोषक है।
सुधाकर सिंह ने कहा कि बड़े स्तर पर राजनीतिक गोलबंदी भाजपा या कांग्रेस के नेतृत्व में ही संभव है। हासिये के लोग भाजपा के खिलाफ हैं। क्षेत्रीय पार्टियों का एक बड़ा हिस्सा भाजपा के विरोध में खड़ा है। ऐसे में कांग्रेस को भी बदलना होगा और कॉमन मिनिमम प्रोग्राम के साथ क्षेत्रीय पार्टियों के साथ गोलबंदी करनी होगी, नया गठबंधन बनाना होगा। सुधाकर कहते हैं कि व्यक्तिगत स्तर पर वे इसी कोशिश में लगे हुए हैं और विभिन्न पार्टी के नेताओं से मिलकर भाजपा के खिलाफ गोलबंदी का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने माना कि वाट्सअप, फेसबुक और ट्विटर के दौर में भी संसाधन और श्रम की उपयोगिता को नकारा नहीं जा सकता है। किसी भी पार्टी के जमीनी कार्यकर्ता ही पार्टी को ताकत देते हैं। पार्टी को आधार प्रदान करते हैं।
सुधाकर सिंह ने कहा कि भाजपा का राजनीतिक चरित्र सवर्ण और बनिया आधारित रहा है। इसके बावजूद वह नये सामाजिक व जातीय समूह में विस्तार का प्रयास कर रही है। बिहार में यह जानते हुए भी कि यादव का वोट भाजपा को नहीं मिलता है, पार्टी ने तीन यादवों को प्रदेश अध्यक्ष बनाया। लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद को अतिपिछड़ी जाति के होने का प्रचार किया और इसका लाभ भी पार्टी को चुनाव में मिला। उन्होंने माना कि भाजपा की जीत में मुसलमान के खिलाफ गोलबंदी ही एक कारण नहीं रहा है। इसके पीछे सामाजिक ढांचे का विस्तार और फैलाव की भी बड़ी भूमिका रही है। उन्होंने कहा कि भाजपा को शिकस्त देने के लिए कांग्रेस व क्षेत्रीय पार्टियों को भी आधार विस्तार की रणनीति पर काम करना होगा और निर्णय प्रक्रिया में आंतरिक लोकतंत्र बहाल करना होगा, ताकि कार्यकर्ताओं को भी पार्टी के साथ होने का अहसास हो। तभी भाजपा के खिलाफ विकल्प खड़ा हो सकता है।