विधान सभा उपचुनाव के परिणाम आने के बाद भाजपा विधानमंडल दल के नेता सुशील मोदी के खिलाफ विरोध का स्वर तीखा होने लगा है। उनके नेतृत्व पर सवाल खड़ा किया जाने लगा है। इसमें अब सवर्ण नेताओं के साथ अनुसूचित जाति व पिछड़े समाज के नेता भी शामिल हो गए। यही मोदी के लिए ज्यादा चिंता का विषय है। मुख्यमंत्री की उम्मीदवारी को लेकर भी जब चर्चा होती है तो कई नेता सक्रिय जाते हैं।
वीरेंद्र यादव
पूर्व मंत्री और भाजपा के वरीय नेता चंद्रमोहन राय ने सुशील मोदी पर मनमानी को आरोप लगाते हुए कहा कि वह राजनीति व पार्टी दोनों को छोड़ रहे हैं। उन्होंने राजनीति से संन्यास लेनी की घोषणा भी की। उन्होंने कहा कि पार्टी उनके अनुभव को आदर व सम्मान नहीं दे रही है। वैसी स्थिति में पार्टी में बने रहने का कोई मतलब नहीं है। उधर पूर्व मंत्री सत्यनारायण आर्य ने भी मोदी पर पार्टी को बर्बाद करने का आरोप लगाया है। हालांकि इनके बारे में सूचना है कि जदयू से टिकट मिलने का पूरा आश्वासन के बाद ही उन्होंने भाजपा की ओर से खुद को मुख्यमंत्री का दावेदार के रूप में पेश किया था। पूर्व मंत्री प्रेम कुमार भी सीएम के रूप में अपनी दावेदारी को मजबूत करने के लिए अपने जन्मदिन पर एक बड़ा आयोजन भी किया था।
इधर विधायक रामेश्वर चौरसिया भी अण्णे मार्ग में दाखिले की रणनीति बना रहे हैं। उन्होंने नया फार्मूला दिया है कि पार्टी को 1974 के आंदोलन से बाहर निकलना होगा। यानी रविशंकर प्रसाद, सुशील मोदी, नंदकिशोर यादव, अश्विनी चौबे समेत अन्य नेता, जो ‘74 आंदोलन की उपज थे, उन्हें मुख्यमंत्री के रेस से बाहर हो जाना चाहिए। कुल मिलाकर भाजपा में सुशील मोदी के खिलाफ माहौल बनाने का प्रयास किया जा रहा है। उनकी राजनीतिक राह में सरसो छींटा जा रहा है, ताकि एक कदम भी सकुशल नहीं चल सकें। दुर्भाग्य यह है कि उनके पक्ष में बोलने वाला कोई नेता सामने नहीं आ रहा है। इससे उन्हें अधिक मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है।