बिहार के चुनावी हलचल में सीमांचल पर पूरे देश की नजर है. यहां असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी पहली बार मैदान में है. लेकिन  सोशल मीडिया में  उनके समर्थकों की गाली गलोज भी चर्चा की वजह बन गयी है.OWAISI

डा. मुमताज नैयर, इंग्लैंड

फिलहाल किशनगंज एक चुनावी अखाड़ा बन गया है . पहले के चुनाव में और अब के चुनाव में बहुत अंतर है, पहले चुनाव प्रचार का माध्यम अलग हुआ करता था, अब इसमें सोशल मीडिया जुड़ गया है..बहरहाल जिस तरह से सोशल मीडिया में कुछ नेता और उनके समर्थक व्यवहार कर रहे हैं वो काफी निंदनीय है.चूँकि ज़्यादातर नेता सोशल मीडिया से जुड़े हैं तो उनको उनके समर्थक के व्यवहार के बारे में भी जानकारी होगी.पर अफसोस कि आजतक किसी नेता का उसके करीबी का कोई मैसेज या स्टेटस मैसेज नहीं पढ़ा जिसमें आपसी सौहार्द पर उन्होंने कोई चर्चा की हो…तो इससे साफ़ जाहिर है की यह सब कुछ नेता लोगों के इशारे पर हो रहा है…

किशनगंज हमेशा से आपसी सौहार्द और भाई चारे के लिए जाना जाता है, हम इसकी मिसाल पूरे विश्व में देते हैं…मुझे मेरे कुछ मित्रों ने मैसेज करके कहा की लोग धमकी और उनके इनबॉक्स में गाली तक लिख रहे हैं.क्यूंकि वो उनके नेता को खुल कर समर्थन नहीं कर रहे हैं.

संघियों जैसा चरित्र

अब आते हैं वापिस किशनगंज, जहाँ चार विधान सभा की सीटें हैं- ठाकुरगंज, बहादुरगंज, किश्नगंज और कोचा धामन. पर सारा ध्यान कोचाधामन विधान सभा पर चला गया है क्योंकि यहां से पहली बार ऑल इंडिया इत्तहादुल मुसलेमीन के टिकट पर अख्तरुल ईमान चुनाव लड़ रहे हैं . खास बात यह है कि सबसे ज़्यादा गाली भी यहाँ के नेता लोगों के समर्थक ही सोशल मीडिया में दे रहे हैं. अगर किसी ने सोशल मीडिया पर ओवैसी या उनके कंडिडेट अख्तरुल ईमान, जो यहां पहले भी विधायक रह चुके हैं, से कोई सवाल पूछा तो समझिये उसकी खैर नहीं. वे सवाल करने वाले की मां-बहन सब एक कर देंगे. इतना ही नहीं उनके समर्थक सवाल करने वाले को इस्लाम का गद्दार तक घोषित कर देंगे.

फेसबुक और व्हट्सऐप पर उनके ग्रूप काफी सक्रिये हैं. फेसबुक पर सीमांचल ग्रूप में अगर आपने ओवैसी के नुमाइंदे अख्तरुल ईमान पर कोई प्रश्न उठाया तो आपकी खैर नहीं. वे आपके खिलाफ ऐसे भिड़ेंगे जैसे भाजपा और आरएसएस के समर्थक भिड़ते हैं. ठीक उन्हीं के जैसी गालियां… मां, बहन… सब कुछ.

हम इस गाली गलौच के बीच नेता से उनके पिछले कामों का हिसाब भी नहीं पूछ पा रहे हैं. शायद यह उनकी सोची समझी रणनीति हो. अच्छा तो यह होता कि हम उनसे पूछ पाते कि आपको मौका मिला था तो आपने क्या किया ? कितना हासिल किया और कितना रह गया..कहाँ कमी हुई, क्या हमारे समर्थन में कमी थी, या आपकी कोशिश में? क्या हम किशनगंज का भविष्य नए उम्मीदवारों में तलाश करें.क्या नए उम्मीदवार हमारे लिए बेहतर काम कर सकते हैं, जिससे हमारे आने वाली पीढ़ी या फिर वर्तमान में जो हैं उनका आने वाला कल अच्छा हो…शायद यह सब सवाल नेता लोगों के लिए असुविधाजनक हो और वो इस बात को बखूबी जान भी रहे हों की उनके पास इन सवालों का कोई जवाब नहीं है.

अगर आपके पास उपरोक्त सवालों के जवाब नहीं तो कोई बात नहीं, हमें इसका गम नहीं है, शायद समय के साथ हम इसका हल ढूंढ लेंगे, पर आपसे विनती है की आप हमारा आपसी भाई चारा खतम न करे.

 

By Editor

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