भारत का बहुसंख्य मीडिया हिटलर के प्रचार मंत्री गोयबल्स की भूमिका में आ गया है. इस आलेख में उन उदाहरणों की चर्चा की गयी है जो साबित करते हैं कि मीडिया की यह भूमिीका लोकतंत्र के लिए घातक है
मुकेश कुमार
लोकतंत्र में मीडिया को तठस्थ रहना चाहिए,पक्षधरता उसका गुण नहीं होना चाहिए.परन्तु वर्तमान परिदृश्य में भारतीय बहुसंख्यक मीडिया ने राजसत्ता और नई पूंजी के प्रति पक्षधरता को अपना लिया है.मीडिया को अगर किसी की पक्षधरता लेनी ही है,तो वो जनसरोकार के प्रति होनी चाहिए.भारत में आज की बहुसंख्यक मुख्यधारा की मीडिया को देखकर ऐसा लगता है कि जोसेफ गोयबल्स की सोच का भारतीय प्रतिरूप बन या है.
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मीडिया लोगों को समाचार देने का काम करता है,लोगों को सूचित करने का काम करता है. ‘लोक’ इस ‘तंत्र’ में जितने अधिक सूचित होंगें लोकतंत्र उतना ही अधिक मजबूत होगा.परन्तु मीडिया अपने प्रचार तंत्र से एक ऐसे एजेंडे का निर्माण कर रहा है जो एकतरफा और भ्रामक है.आज का बहुसंख्यक भारतीय मीडिया अपने “चारणकाल” से गुजर रहा है.इस काल में मीडिया,सत्ता की अंधभक्ति के दौर से गुजर रहा है.जिसमें चाटुकारिता और जी हुजूरी मुख्य तत्व हो गयें हैं.
इसमें लोगों को वही दिखाया/सुनाया/बताया जाता है जो सत्ता के अभिकरण चाहतें हैं.यह लोकमत तैयार करता है.
ऐसी-ऐसी रिपोर्टें
# मार्च-अप्रैल 2014 में आज तक,ABP न्यूज,जी न्यूज़,(हिन्दी) एनडी टीवी, सीएनएन-आईबीएन (इंग्लिश) टीवी चैनलों के प्राइम टाइम में कवरेज के आधार पर किये गये एक अध्धयन में बताया गया है कि सबसे ज्यादा कवरेज 34 प्रतिशत (2575 मिनट) नरेद्र मोदी को मिला.इसके बाद 10 प्रतिशत (799मिनट) कवरेज अरबिंद केजरीवाल को. व्यक्तिगत तौर पर जंहा नरेन्द्र मोदी को सबसे ज्यादा कवरेज मिला उसी तरह पार्टी के स्तर पर भी भाजपा को सबसे ज्यादा 38 प्रतिशत कवरेज दिया गया.यह कवरेज कुछ कहता है.आखिर क्यों एक व्यक्ति और एक पार्टी को इतना कवरेज दिया गया? क्या मीडिया गोयबोल्स के इस प्रणाली पर काम कर रहा है कि एक बात को इतनी बार बोलो की लोग उसको सही मानने लगे. सोशल मीडिया पर इसी तर्ज पर एक तंत्र बनाकर काम किया गया. “अच्छे दिन आने वाले हैं” को इतने बार बोला गया की लोगों को सचमुच लगने लगा की अच्छे दिन आने ही वालें है.
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# मीडिया ने कैसे एक लोकतन्त्र को राजतंत्र में बदल दिया .नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के दिन खबरों के शीर्षक की बानगी से यह पता चलता है *’आज से मोदी राज’ (राष्ट्रीय सहारा)*मोदी का राजतिलक आज (हिन्दुस्तान)* नमो युग (दैनिक भास्कर)* मोदीजी का आज राजतिलक होने वाला है (नवभारत टाइम्स)* मोदी के राजतिलक को यादगार बनाने आए हैं ये मेहमान(आजतक/इंडिया टुडे) *मोरारी बापू ने कहा – कि भगवान श्रीराम का राजतिलक भी संध्या के समय हुआ था आज संविधान के अनुरूप देश चलाने वाले प्रमुख का राजतिलक भी संध्या को हो रहा है(पंजाब केशरी)*मोदी का राजतिलक(एन.डी टी. वी.) क्या समाचारपत्रों और टी.वी. चैनलों के शीर्षक से इसमें चरण चाटुकारिता की बू नहीं आती है?
# केजरीवाल-यसवंत प्रसंग – मीडिया की सोच और चरित्र केजरीवाल-यशवंत प्रसंग में देखी जा सकती है.यह समाचारपत्रों के दो शीर्षकों की बानगी इस प्रकार है. “केजरी का नया ड्रामा बेल न लेकर जेल गए” और “स्ट्रीट ड्रामा बैक आफ्टर केजरीवाल ऑप्ट्स फॉर जेल ओवर बेल इन लिगल केस” और दूसरी तरफ जब यही काम भाजपा के नेता यशवंत सिन्हा ने किया तो समाचारपत्र में शीर्षक की बानगी इस तरह थी “जमानत नहीं लेने पर जेल गए यशवंत”.एक तरफ यही काम करने पर मीडिया को नौटंकी लगता है,जब यही काम भाजपा के लोग करते हैं तो यह नौटंकी नहीं लगती, आखिर क्यों ?
#सुभाष नायक प्रसंग – संसद भवन में प्रवेश करते समय नरेंद्र मोदी द्वारा सीढियों पर झुककर नमन करने को मीडिया मोदी के विनम्र और सादगी का परिचायक के रूप में पेश कर रहा है.इसके पहले जब 1991 में कालाहांडी के सांसद सुभाष नायक ने ऐसा किया था तो मीडिया ने नायक को पिछड़ेपन का परिचायक बताया था.एक ही चीज कैसे पिछड़ापन से विनम्रता का परिचायक बन जाता है ?एक ही कार्य को मापने के दो मापदंड कैसे हो सकतें हैं? मीडिया इस तरह भावुक क्यों हो रहा है ?
#बलात्कार प्रसंग –– उत्तर प्रदेश में जो महिलायों के साथ हो रहा है वो स्तब्धकारी है,उसकी जितनी निंदा की जाये वो कम है. परन्तु इसके प्रति मीडिया की जो भूमिका है वो और भी स्तब्ध करने वाली है. ‘उत्तर प्रदेश में जंगलराज’ का पैकेज चलाने वाले क्यों नहीं विदिशा(मध्य प्रदेश) में एक दलित लड़की द्वारा छेड़खानी का विरोध करने पर उसको जलाने की घटना को तानने की कोशिश करते हैं? यह क्यों नहीं दिखाया गया उसी प्रमुखता से क्योकिं वो सुषमा स्वराज के क्षेत्र की घटना है,जो मध्य प्रदेश में हुई जंहा रामराज व्याप्त है? क्यों नहीं दिल्ली स्थित राजस्थान भवन से सड़क पर फेंकी गई सीकर की निर्भया और उसके परिवारजनों की खबर आपने दिखाया?यह क्यों नहीं बताया की इस साल शिवराज के रामराज में प्रति दो घंटे में एक लड़की/महिला के साथ बलात्कार की घटना होती है? क्यों नहीं यह बताने का काम करतें है की दिल्ली में प्रतिदिन 6 बलात्कार और 14 छेड़खानी की घटना होती है ?आपके निशाने पर सिर्फ उत्तर प्रदेश ही क्यों है? संपूर्ण देश में महिलाओं पर हो रहे अत्याचार क्यों नहीं? क्यों आपको सिर्फ एक ही राज्य में हो रही अत्याचार दिखता है ?कोई एजेंडा है आपका?
#विदेश यात्रा प्रसंग—मीडिया कैसे धारणा बनाने का काम करता है इसको इस उदहारण से समझा जा सकता है.मनमोहन सिंह ने पिछले दस सालों में 87 विदेश यात्रा की है,जिस में कई महत्वपूर्ण समझौते किए और कार्यान्वयन भी हुआ.परन्तु मीडिया ने इसको प्रचारित-प्रसारित करने की कोई कोशिश नहीं की.इसको तानने की जरुरत नहीं महसूस की गई,परन्तु वर्त्तमान प्रधानमंत्री ने अभी विदेश यात्रा की योजना ही बनाई है और मीडिया ने इसको इस तरह लिया है जैसे लगता है मानो कोई भारतीय इतिहास का सम्राट दिग्विजय यात्रा पर निकालने वाला है. “हिन्दी” में बात करने को इस तरह प्रचारित किया जा रहा है मानो मात्र इसी के करने से भारत फिर से विश्वगुरु बन गया.
“मोदी कुर्ता” पर पैकेज चलाने वाले मीडिया क्या अब यही बाकी रह गया है?
लेखक पंजाब विश्वविद्यालय में मीडिया स्कॉलर हैं.
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