1986 बैच के बिहार के इन आईपीएस अधिकारी ने आखिर किन परिस्थितियों में खुद को जला कर मारने की कोशिश की, आखिर चारों ओर चुप्पी क्यों है? बोल बिहार बोल!
ज्ञानेश्वर
देश-दुनिया में बसे बिहारियों पर जब कभी जुल्म हुआ,बिहार चुप नहीं बैठा है । ईमानदारी को मुर्दा-घाट में जला गदर काटते लोग भी देखते ही रहे हैं । ऐसे लोग जल्द सुर्खियां भी बटोर लेते हैं । लेकिन ‘असंभव’ किस्म के बिहारी योद्धा रणजीत कुमार सहाय को मुंबई में मौत से लड़ते जान, बिहार चुप है । बिहार की मीडिया में भी चर्चा नहीं ।
बहुतों को रणजीत कुमारसहाय के बारे में पता नहीं होगा । आप 1986 बैच के महाराष्ट्र काडर के हाकिम हैं । पटना में ही हाकिम बनने से पले-बढ़े हैं । ऐसे-वैसे नहीं,हजार फीसदी ‘ईमानदार’ माने जाते हैं ।
नतीजा,कभी ढंग की पोस्टिंग नहीं मिली । जूनियर को रिपोर्ट करने को कहा गया । फिर भी हारे नहीं । गड़बडि़यों का बम फोड़ते रहे । बड़े-बड़े से भिड़ते रहे । रैंक एडीजी का,लेकिन पोस्टिंग मिली एसपी के समकक्ष पद पर । सबों से शिकायत की । कहीं सुनवाई नहीं हुई । जिंदगी में चहुंओर निराशा देख रणजीत कुमार सहाय ने स्वयं को ही खत्म करने का फैसला कर लिया । चालू पखवारे के प्रारंभ मे अपने घर में उन्होंने स्वयं को जला मारने की कोशिश की,लेकिन ईश्वर ने मरने भी नहीं दिया । पचपन फीसदी से अधिक जले हैं । बहुत ही गंभीर अवस्था में बंबई अस्पताल में कभी वेंटीलेटर तो कभी आईसीयू में जिंदगी-मौत की लड़ाई चल रही है । महाराष्ट्र पुलिस ने जांच को ओपन रखा है । कहानी बदलने को हथकंडे भी चल रहे हैं ।
फिलवक्त,सहाय को पदस्थापन महाराष्ट्र स्टेट पुलिस हाउसिंग कारपोरेशन में मिला था । हिस्ट्री एसपी रैंक के हाकिमों की पोस्टिंग का है । पहले से प्रताडि़त सहाय इस भद्दे अपमान को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे । उन्होंने महाराष्ट्र पुलिस के मुखिया संजीव दयाल व अपर सचिव (होम) अमिताभ रंजन से मिलकर शिकायत भी दर्ज कराई । लेकिन कोई सुनने को तैयार नही हुआ । उल्टे यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि सरकार का फैसला है । उन्होंने प्रांत के होम मिनिस्टर आर आर पाटिल से मिलने का समय मांगा,जो कभी मिला ही नहीं । वे सूचना के अधिकार के तहत पोस्टिंग के पीछे के निर्णायक-तत्वों को भी जानने में लगे थे ।
कहा जाता है कि वे आवाज उठाने को महाराष्ट्र आईपीएस एसोसिएशन के पास गये । लेकिन सरकार के प्रभाव में एसोसिएशन ने भी कुछ नहीं किया । हां,जमाने के हिसाब से ढ़ल जाने की नसीहत कुछ दोस्तों ने जरुर दे दी । जिद्दी सहाय को सिद्धांतों से समझौता करना आता नहीं,सो बदले नहीं । बदले में,तकलीफ और बढ़ा दी गई । बड़े हाकिमों के फरमान पर किसी भी आईपीएस को मिलने वाले निजी स्टाफ तक वापस ले लिये गये । घर में भी उलाहना मिलता । परिणाम,जिंदगी से मोह-भंग होता जा रहा था ।
सो,सहाय ने खुद को ही खत्म करने का फैसला कर लिया । मालाबार हिल्स के अवंति-अंबर के सरकारी बंगले में उन्होंने शरीर पर तेल उड़ेला और जला मारने की कोशिश की । लेकिन इहलीला समाप्त होने के पहले ही घरवालों ने देख लिया और बहुमंजिली इमारत में रहने वाले दूसरे अधिकारियों के सहयोग से अस्पताल लेकर पहुच गये । अस्पताल के डाक्टर आज भी कहने की स्थिति में नहीं हैं कि सहाय की जिंदगी कब खतरे से बाहर आयेगी । फेफडे की स्थिति तो बहुत ही खराब है । उधर,बदनामी से बचने-बचाने को महाराष्ट्र पुलिस रोज नये-नये तथ्यों को गढ़ने में लगी है । परंतु,सच सभी जान रहे हैं ।
अब बारी बिहार को जगने-जगाने की है । जगना तो पूरे देश को चाहिए । सहाय जैसे विरले ईमानदार अब अंगुलियों पर गिन लेने को ही बचते हैं । सो,हम सभी न सिर्फ सहाय की ‘रिकवरी’ की कामना करें,बल्कि महाराष्ट्र में मिले अपमान का बदला लेने की आवाज भी मुखर करें ।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और नौकरशाही से जुडे मामलों के जानकार हैं