Abdul Qaiyum Ansari की शख्सियत का जाजया क्यों जरूरी है
Abdul Qaiyum Ansari को कुछ लोग बाबा ए कौम कहते हैं जबकि व्यवहार में एक समाज उन्हें बाबा ए बिरादरी बना कर अपनी जागीर मान बैठा है.
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एक जुलाई को आईपीआरडी महकमे से एक तस्वीर और प्रेस विज्ञप्ति जारी की गयी. इस तस्वीर में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अब्दुल क्य्यूम अंसारी साहब को उनके जन्मदिन पर पुष्पांजलि अर्पित कर रहे हैं.
बाद में असदुद्दीन ओवैसी ने ट्वीट के जरिये अंसारी साहब को खिराज ए अकीदत पेश की. अब आइए इसके दूसरे पक्ष को देखिए. क्य्यूम अंसारी साहब की लिगेसी को सीढ़ी बना कर जिन्होंने ( अली अनवर) राज्यसभा की मेम्बरी हासिल की थी वे अब गोशानशीनी व एकांतवास पर मजबूर हैं. तब हम सब क्य्यूम अंसारी साहब को ‘बाबा ए कौम’ के रूप में जानते रहे. हर साल बड़ी मुखलिसी से उनका यौम ए पैदाइश मनाते रहे. लेकिन जैसे ही उपरोक्त मोहदय राज्यसभा में दाखिल हुए उन्होंने अपने नाम के पीछे ‘अंसारी’ लगाना शुरू कर दिया- अली अनवर से वह अली अनवर अंसारी बन गये. समाज के दीगर लोगों के साथ मैं भी सन्न था. गौर करें तो महसूस होगा कि ऐसा करने वाले अकेले अली अनवर ही नहीं थे. एक खास समूह ने क्य्यूम अंसारी को अपने खाने में समेट कर उनकी बुलंदी को बौना बना डाला. जो शख्सियत ‘बाबा ए कौम’ थी उसे ‘बाबा ए बिरादरी’ में कैद कर डाला गया. गोया अंसारी साहब उनकी जागीर हों.
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जब आप किसी शख्सियत को अपनी निजी मिलकियत समझते हैं तो बाकी लोग बेबसी में दूर हो जाते हैं. यही गलती मायावती ने कांशी राम के साथ की. कांशी राम को अपनी जागीर बना कर मायवती ने उन्हें अन्य दलित बिरादरियों से छीन लिया. नतीजा हुआ कि अन्य जाति के दलित उनसे दूर हो गये. आज मायावती किस हाल में हैं, सब जानते हैं.
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मैंने पिछले चंद दिनों में क्य्यूम अंसारी साहब पर दो फेसबुक पोस्ट लिखे. इनमें मैंने अंसारी साहब की कुछ भूल को प्वाइट आउट करने की कोशिश की. मेरी समझ कहती है कि चाहे कोई शख्सियत कितनी ही बड़ी क्यों न हो, वह होता तो इंसान ही है. और इंसान होने के नाते उससे गलतियां होना, चूक होना कत्तई फितरी बात है.हम सब का यह फर्ज है कि हमें अब्दुल कय्यूम अंसारी की शख्सियत और उनकी सियासत का मोहासबा करें. उनका आलोचनात्मक जायेजा लें. क्योंकि मैं समझता हूं कि इतिहास के आलोचनात्मक अध्ययन के बाद ही हम भविष्य की राह बनाते हैं. हम जब तक इतिहास से सबक नहीं लेंगे, तब तक भविष्य की संभावित गलतियों से बच नहीं पायेंगे.
यह एक अविवादित तथ्य है कि अंसारी साहब ने मुस्लिम लीडरशिप के सामंती चरित्र के खिलाफ संघर्ष किया. उसे चुनौती दी. लेकिन जैसे-जैसे उनकी गिरफ्त में पावर आई, इसका लाभ अंसारी साहब के फालोअर्स ने उठाया. वे सरकारी नौकरियों में आने लगे. कारोबार के अवसर उन्हें मिलने लगे. आर्थिक सम्पन्नता आने लगी. जाहिर है इसका फायदा अगली नस्लों को हुआ और नतीजतन वे एजुकेशन में भी आगे निलने लगे. लेकिन ठीक उसी समय में क्य्यूम अंसारी की तहरीक का फायदा दीगर पसमांदा बिरादरियों तक नहीं पहुंची. वे अंधेरे में गुम ही रही.
इंसानियत का तकाजा यह है कि तरक्की में सब की हिस्सेदारी इंसाफ के साथ तय हो.अब्दुल क्य्यूम अंसारी साहब की शख्सियत और उनकी सियासत का मोहासबा इसी आईने में होना चाहिए. ताकि हम भविष्य में उन्हीं गलतियों को न दोहरायें जिन्हें इतिहास में हम कर चुके हैं