SaatRang : चन्नी बने CM, संघ के हिंदुत्व-राष्ट्रवाद को बड़ा झटका

कांग्रेस ने चरणजीत सिंह चन्नी को पंजाब का मुख्यमंत्री बनाकर आरएसएस के हिंदुत्व और राष्ट्रवाद को वर्ष का सबसे बड़ा झटका दिया है। एक निर्णय से नैरेटिव बदला।

यह वही कांग्रेस नहीं है, जो 2019 तक थी। यह राहुल गांधी के नेतृत्व में बिल्कुल नई कांग्रेस है, जहां जेएनयू के कई पूर्व छात्र नेता उनके इर्द-गिर्द काम कर रहे हैं। इस पर बाद में चर्चा करेंगे, पहले नैरेटिव पर बात कर लें।

राजनीति में नैरेटिव का बड़ा महत्व है। नैरेटिव मतलब विमर्श। संघ और भाजपा ने पिछले कुछ वर्षों में हिंदुत्व और राष्ट्रवाद का ऐसा माहौल बनाया कि बेटे की नौकरी चली गई, फिर भी पिता खुश हैं कि पाकिस्तान में महंगाई बढ़ रही है। कभी राशन नहीं मिलने का कारण अब्बाजान, कभी जनसंख्या को नौकरी जाने का कारण बता दिया जाता है। अब आदेश है कि सरसों तेल खुदरा में नहीं बिकेगा। यानी अब 100 एमएल तेल भी रामदेव और अडानी की बिकेगी। हिंदुत्व-राष्ट्रवाद का नशा ऐसा है कि कभी लोग कश्मीर में जमीन खरीदने लगते हैं, कभी पाकिस्तान की बर्बादी देखकर अपनी बर्बादी भूल जाते हैं।

लेकिन कांग्रेस ने पंजाब में चन्नी को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा-संघ के नैरेटिव पर जबरदस्त वार किया है। कल से सोशल मीडिया पर नफरत की आंधी की जगह दलित सशक्तीकरण ने ले ली है। आजादी के बाद पंजाब में पहली बार दलित मुख्यमंत्री बने हैं, जबकि वहां उनकी आबादी लगभग 32 प्रतिशत है। ये दलित अन्य प्रांतों की तरह पंजाब में भी अमूमन खेतिहर मजदूर हैं। भाजपा ने कहा कि कांग्रेस का यह कदम दिखावे का है। उसके इस बयान की भी लोगों ने हवा निकाल दी। लोग कह रहे हैं कि आप भी दिखावे के लिए ही एक दलित मुख्यमंत्री बना दीजिए।

आज शपथ लेने के बाद चन्नी ने प्रेस वार्ता को संबोधित किया। उन्होंने सबसे पहले किसानों का कर्जा माफ करने, बिजली बिल माफ करने की बात की। किसान ही नहीं, हर गरीब की बिजली बिल माफी की घोषणा की। पूरा जोर किसान-मजदूर और आम लोगों पर था।

चन्नी ने कहा कि वे जब पैदा हुए, तो माता-पिता के सिर पर छत नहीं थी। माता- पिता मजदूरी करते थे। बचपन भूख और गरीबी में बिताई।

चन्नी के मुख्यमंत्री बनने पर देशभर के दलित संगठनों ने स्वागत किया है। सभी खुशी जता रहे हैं। इनमें ऐसे दलित संगठन भी हैं, जो कांग्रेस के विरोधी रहे हैं। जिस तरह दलित संगठनों में उत्साह दिख रहा है, उससे भाजपा-संघ की परेशानी बढ़ गई है। हालांकि अभी नफरत का एजेंडा पिर से उभारने की कोशिश होगी, देखना है, कांग्रेस उसका जवाब कैसे देती है।

कांग्रेस के इस निर्णय से साफ है कि कांग्रेस अब पुरानीवाली कांग्रेस नहीं है। कांग्रेस के ग्रुप ऑफ 23 नेताओं का कहीं अता-पता नहीं है। इस बार राहुल गांधी की चली है। उनके इर्द-गिर्द जेएनयू के उन छात्र नेताओं की एक टीम काम कर रही है, जो जेएनयू आंदोलन में पहली बार भगत सिंह और आंबेडकर को साथ लेकर आई। गांधी-नेहरू के भारत के प्रति न सिर्फ वैचारिक रूप से स्पष्ट है, बल्कि सिद्धातों को राजनीतिक व्यवहार में तब्दील करने का अनुभव लिये है। इसी प्रयोग ने वर्ष 2021 में पहली बार संघ-भाजपा के नैरेटिव को पीछे धकेल कर देश में अपना नया नैरेटिव पेश किया है।

राजनीति में यह महत्वपूर्ऩ होता है कि नैरेटिव तय कौन कर रहा है। बहुत दिनों बाद कांग्रेस नैरेटिव तय कर रही है और भाजपा जवाब दे रही है।

कृष्ण-गाथा सुनानेवाले मुस्लिम बुजुर्ग की तेजस्वी ने की सराहना

By Editor


Notice: ob_end_flush(): Failed to send buffer of zlib output compression (0) in /home/naukarshahi/public_html/wp-includes/functions.php on line 5427