कोरोना घोटाला हुआ, सरकार ने माना, पर असली गुनहगार कौन
अब बिहार सरकार ने भी मान लिया है कि कोरोना घोटाला हुआ है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि असली गुनहगार कौन है? क्या इतना बड़ा घोटाला छोटी मछलियों से संभव है?
कुमार अनिल
बिहार सरकार ने जमुई के सिविल सर्जन सहित पांच छोटे अधिकारियों को सस्पेंड कर दिया है। कल स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव प्रत्यय अमृत ने प्रेस के सामने सफाई दी। उन्होंने कहा कि एक जिले में ही गड़बड़ी मिली है। एक-दो जिलों से रिपोर्ट और स्पष्टीकरण मांगा गया है। उनकी सफाई के बाद भी सवाल खत्म नहीं हुए, बल्कि राजद ने कहा है कि इतना बड़ा घोटाला बिना मुख्यमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री और स्वास्थ्य सचिव की मिलीभगत के हो नहीं हो सकता।
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विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने आज अपने सवाल को और भी धारदार बनाते हुए सरकार पर हमला किया। उन्होंने कहा-बिहार में कोरोना घोटाला अरबों में है। जांच करानेवाले का नाम फर्जी, मोबाइल नंबर जीरो, पता और उम्र भी जीरो है। जब राजद सांसद ने राज्यसभा में मामला उठाया तो मुख्यमंत्री ने घोटाला करनेवालों से ही जांच करवा कर कुछ ही घंटे में क्लिन चिट दे दी। है ना गजब।
इधर, राजद ने लगातार तीन ट्विट करके मुख्यमंत्री को घेरा। राजद ने एक अखबार में भागलपुर में छपी रिपोर्ट साझा की है, जिसमें कहा गया है कि कोरोना जांच की सरकारी किट प्राइवेट अस्पतालों में पहुंच रही है। तो क्या फर्जी जांच दिखाकर किट को प्राइवेट अस्पतालों को बेच दिया गया।
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स्वास्थ्य सचिव ने कल जो सफाई दी है उसके अनुसार यह कोई बड़ा मामला नहीं है। उन्होंने सिर्फ जांच के मामले में सफाई दी है। क्वारेंटाइन सेंटर कितने बने, उसमें कितने लोग कितने दिन ठहरे, उन्हें सारी सुविधा दी गई या नहीं, इस बारे में अबतक सरकार ने सफाई नहीं दी है। क्या यहां ठहरनेवालों का फोन नंबर लिया गया, उसकी जांच की गई? यहां ठहरनेवाले को सरकारी नियम से सबकुछ दिया गया या नहीं, अबतक इसकी जांच होनी बाकी है।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब जांच की संख्या अचानक 8 हजार से लाखों में पहुंच गई, तो विभाग, मंत्री और मुख्यमंत्री ने इस बारे में जानकारी ली या नहीं? क्या किट की खरीद निजी कंपनी से की गई या केंद्र ने मुहैया कराए? अब देखना है कि क्या कोरोना घोटाले की विस्तृत जांच कोई तीसरी एजेंसी करेगी या सरकार अपने ही विभाग से रिपोर्ट लेकर संतुष्ट हो जाएगी।