हजारों ने अपनाया बुद्धिज्म, विष्णु को नकारा, भाजपा के उड़े होश
24 घंटे हो गए, लेकिन भाजपा के बड़े नेता चुप हैं। बौद्ध धर्म अपनाने वाले दलित-पिछड़े अपनी 22 प्रतिज्ञाओं पर कायम हैं। भाजपा के हिंदुत्व एजेंडा को धक्का।
दशहरा के दिन दस हजार दलित-पिछड़ों ने दिल्ली में हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म अपना लिया। इस अवसर उन्होंने 22 प्रतिज्ञाएं लीं, जिनमें हिंदू देवी-देवताओं में विश्वास नहीं करने की प्रतिज्ञा भी शामिल है। शुक्रवार को इसका वीडियो सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर बवाल हो गया। भाजपा के एक-दो छोटे नेता ही सामने आए। उन्होंने भी बौद्ध पर कुछ कहने के बजाय कार्यक्रम में शामिल दिल्ली सरकार के मंत्री पर ही हमला केंद्रित रखा। भाजपा के बड़े नेता इस विवाद पर चुप्पी साधे हैं। हालांकि उनके समर्थक बोल रहे हैं, लेकिन वे भी सिर्फ आप के मंत्री गौतम को निशाने पर ले रहे हैं।
सवाल है कि इस वीडियो के आने के बाद भाजपा और संघ के बड़े नेता चुप क्यों हैं? दिल्ली में बौद्ध धर्म अपनाने का विवाद बढ़ा तो संघ का एजेंडा कमजोर होगा। संघ सालों भर दलितों-पिछड़ों और आदिवासियों में हिंदुत्व का प्रचार करता है। बौद्ध धर्म के साथ विवाद बढ़ा, तो दलित संघ के बजाय आंबेडकर के निकट जाएंगे और इससे संघ को नुकसान हो सकता है। आंबेडकर ब्राह्मणवादी विचारों, छुआछूत, कर्मकांड, भाग्य पर भरोसा के खिलाफ थे। धम्मप्रिय संतोष बहुजन ने कहा कि खुद आंबेडकर ने 22 प्रतिज्ञाएं दिलाई थीं, जिनमें 11 प्रतिज्ञाएं हिंदू धर्म छोड़ने का कारण बताने के लिए थीं। बाकी 11 प्रतिज्ञाएं बौद्ध धर्म अपनाने के संबंध में थीं।
कई टीवी चैनल सूत्रों के हवाले से बता रहे हैं कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपने मंत्री से नाराज हैं, जिन्होंने बुद्ध का धर्म अपनाया। उनका नाराज होना स्वाभाविक लगता है, क्यों कि केजरीवाल खुद को मंदिर जाते, पूजा करते प्रचारित करते रहे हैं। जब संघ-भाजपा के नेता चुप हैं, तो संभव है पूरा मामला जल्दी ही ठंडा पड़ जाए।
खास बात यह कि कल संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि जाति और वर्ण को भूल जाइए। ये पुरानी चीजें हैं।
वे पांच कारण, जिससे पीके संघ-भाजपा के एजेंट मालूम पड़ते हैं