सूख चुकी है अखबारों में बहने वाली ‘विकास की गंगा’
संजय वर्मा
नीतीश सरकार के दूसरे कार्यकाल में विकास के सपने बेचे जा रहे थे. अखबारों के पन्ने सपनों से रंगे होते थे.”बिहार में विकास की गंगा बह रही. बिहार मॉडल की पूरी दुनिया मे चर्चा हो रही है. बिहार जो पहले सोंचता है वो देश बाद में सोचता है”.
न जाने कितने दावे प्रतिदावे किये जा रहे थे. इस बीच केंद की उसकी ही मोदी सरकार के सबसे प्रामाणिक संस्था नीति आयोग ने सारे दावों की पोल खोलकर रख दी. नीति आयोग ने एसडीएफ रिपोर्ट के जरिये यह बताया कि बिहार हर सेक्टर में फिसड्डी राज्य है.
नीति आयोग ने पिछले साल की रिपोर्ट में भी यही बताया था.
लालू राबड़ी के 15 साल के मुकाबले 15 साल की वर्तमान सरकार के सारे दावे खोखले साबित हो गये.
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नीति आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद जदयू के नेता सीएम नीतीश कुमार के लिए विकास पुरुष का रट कैसे लगाते रहे, इस पर भी सवालिया निशान लग गया है।
अब इस सच को स्वीकारने और आगे सुधारने की बजाय थोथी दलील पेश की जा रही हैं ( उपेंद्र कुशवाहा के द्वारा) कि जबतक बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नही मिल जाता तबतक विकास संभव नही है.
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अपनी नाकामियों को छुपाने के लिये इस तरह की मांग गाहे बगाहे उठायी जाती रही हैं. पर जनता शायद ही उसपर भरोसा करे.
2005 में नीतीश कुमार की सरकारर बनी. अब करीब 16 साल हो गये. नीतीश कुमार की सरकार का चौथा टर्म जारी है.तब तो तोते ने मुह नही खोला और जब नीति आयोग ने जब सच से पर्दा हटा दिया तो फिर वही राग अलापने लगे है. क्या नीति आयोग ने जिन राज्यो को विकास के मामले में टॉप पर पाया क्या उन्हें विकसित राज्य बनने के लिये विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त है? और फिर यह बहानेबाजी क्यों, जब केंद्र की जिस पार्टी की सरकार है उसी पार्टी के साथ मिलकर बिहार में सरकार चला रंहे हैं तो अब तक क्यों नहीं विशेष राज्य का दर्जा दिला पाये?
उधर पिछले तीन दिनों से, जबसे बिहार को नीति आयोग ने अपने मानदंड पर देश का सबसे फिसिड्डी राज्य घोषित किया है, नीतीश कुमार ने अपना मुंह नहीं खोला है. नीतीश कुमार मुंह खोलें भी तो कैसे. दस साल पहले दुनिया भर में प्रचारित कर के जो वाहवाही लूटी गयी थी, वाहवाही का वह घड़ा फूट चुका है.