बिहार का सियासी भविष्य, अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) और RJD की रणनीति
लोकसभा चुनाव नतीजों से साफ है कि बिहार का सियासी भविष्य अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) की ताकत के सहारे तय होगा. RJD ने इसी रणनीति के मद्देनजर कदम बढाना शुरू कर दिया है.
लोकसभा चुनाव के तीन महीने बीत चुके हैं. तमाम पार्टियां अब बिहार विधानसभा चुनाव के लिए कमर कस रही हैं. जहां भाजपा, जदयू व लोजपा लोकसभा की 40 में से 39 सीटों पर जीत की खुशी के उत्साह में है वहीं राजद के नेतृत्व वाले महागटबंधन अपनी हार के कारणों के विश्लेषण के बाद एक नयी रणनीति से मैदान में उतरने की तैयारी में हैं.
अत्यंत पिछड़ा वर्ग के लिए RJD की पहल
राजद के नेता तेजस्वी यादव ने ऐलान कर दिया है कि पार्टी पदों पर पंचायत से ले कर राज्य स्तर तक अत्यंत पिछड़ों (EBC) को 60 प्रतिशत नुमाइंदगी दी जायेगी. साथ ही विधानसभा चुनाव में टिकट बंटवारे में उन्हें मुनासिब प्रतिनिधित्व भी दिया जायेगा. तेजस्वी का यह ऐलान प्रत्याशित था.
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क्योंकि लोकसभा चुनाव में राजद की हार का सर्वाधिक बड़ा कारण अत्यंत पिछड़े वर्ग (EBC) के वोटरों को अपनी तरफ आकर्षित ना कर पाना ही था. राज्य में अत्यंत पिछड़े वर्ग का वास्तविक आंकड़ा पर भ्रम की स्थिति है. आम तौर पर राजनीतिक जानकार 25 से 35 प्रतिशत अत्यंत पिछड़े वर्ग की आबादी मानते हैं. यह भ्रम जातीय जनगणना का वास्तविक आंकड़ा न होने के कारण है. नाई, कहांर, कुम्हार, केवट, मलाह, बिंद, बेलदार, पन्हेरी, बेलदार, बिंद, नोनिया, बढ़ई, भेडिहर, आदि जैसी 55 से ज्यादा जातियां इस वर्ग में आती हैं. लेकिन इस वर्ग की सबसे बड़ी समस्या, इसके खुद के मजबूत नेतृत्व का ना होना रहा है.
1990 के दशक में लालू प्रसाद ने इस वर्ग पर मजबूत पकड़ बना ली थी. लेकिन 2005 के बाद इस वर्ग पर जदयू और भाजपा का प्रभाव मजबूती से बढ़ा. इसका सीधा नुकसान राजद को उठाना पड़ा है.
अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) का महत्व
2019 के लोकसभा चुनाव इसका नवीनतम उदाहरण है. राजद ने अपनी इसी दुखती रग को पहचाना है. तेजस्वी का 60 प्रतिशत पार्टी पदों पर अत्यंत पिछड़ों को देने का ऐलान इसी दिशा में किये गये प्रयास की शुरुआत है.
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ऐसा नहीं है कि भाजपा व जदयू राजद के इस प्रयास के बाद चुप बैठने वाले हैं. इन तमाम दलों को अत्यंत पिछड़े वर्ग के वोट की सबसे ज्यादा चिंता का कारण यही है कि यह वर्ग आम तौर पर फ्लोटिंग वोटर्स माना जाता है. पिछले दो लोकसभा चुनाव- 2014 व 2019 में इस वर्ग ने दिल खोल कर भाजपा गठबंधन का साथ दिया. लेकिन 2015 के चुनाव में इसी वर्ग ने राजद की जीत में अपना कंधा लगाया. नतीजा यह हुआ कि राजद बिहार विधान सभा में सबसे बड़े दल के रूप में उभर सका. जबकि 2019 के चुनाव में उसकी हार का सबसे बड़ा कारण अत्यंत पिछड़ों का समर्थन न मिलना ही रहा.
लेकिन बड़ा सवाल यह है कि राजद का यह प्रयास कैसे कारगर होगा?
क्या चाहते हैं EBC के लोग
अत्यंत पिछड़ा वर्ग से ताअल्लुक रखने वाले प्रखर युवा चेहरा अवधेश कुमार लालू का मानना है कि धर्मांधता और अंधभक्ति के इस राजनीतिक दौर में अत्यंत पिछड़े वर्ग के बड़े हिस्से में सोशल जस्टिस की राजनीति की धार कुंद पड़ते जाने पर बेहद बेचैनी है. इस वर्ग ने महसूस कर लिया है कि साम्प्रदायिक राजनीतिक की सबसे बड़ी कीमत पिछले पांच-छह साल में इसी वर्ग को चुकानी पड़ी है.
अवधेश स्पष्ट कहते हैं कि राजद नेतृत्व को गांव-गांव की यात्रा करनी होगी. अत्यंत पिछड़ों के घरों तक जा कर वहां से मजबूत नेतृत्व को सामने लाना होगा.
अवधेश कुमार लालू, सन 2000 के आसपास पटना विश्वविद्यालय छात्र राजनीति से उभरे सोशल जस्टिस के ऐसे तपे हुए कार्यकर्ता हैं जिनसे खुद लालू प्रसाद काफी प्रभावित रहे हैं. लेकिन बदलते राजनीतिक परिदृश्य ने अवधेश कुमार लालू जैसे सामाजिक न्याय के सैकड़ों राजनीतिक कार्यकर्ताओं को किनारे पहुंचा दिया.
अवधेश कहते हैं कि “राजद को सोशल जस्टिस की धारा की नयी पीढ़ी के सिपाहियों तक पहुंचना होगा. वैसे युवाओं को वापस राजद से जोड़ने के लिए राजद लीडरशिप को स्पेशल ड्राइव की शुरुआत करने के लिए गांव-गांव यात्रा करनी होगी. सामाजिक न्याय की राजनीति को पिछले वर्षों में, साम्प्रदायिक राजनीति ने भारी नुकसान पहुंचाया है. बस जरूत इस बात की है कि इस वर्ग के दर्द को बांटें और उन्हें साथ लाये तो मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में क्रांतिकारी बदलाव दिखेगा”.
अवधेश, राजद द्वारा अत्यंत पिछड़ों को पार्टी पदों पर 60 प्रतिशत नुमाइंदगी को एक दूरदर्शी कदम मानते हैं साथ ही कहते हैं कि इस फैसले को व्यवहार की जमीन पर उतारना होगा.
अत्यंत पिछड़ा (EBC) वर्ग और भाजपा
यहां यह काबिले जिक्र है कि राजद द्वारा अत्यंत पिछड़ों को अपने करीब लाने के प्रयास की तोड़ एनडीए द्वारा यकीनन किया जायेगा. पिछले जुलाई में भाजपा ने इसी मुद्दे पर गहन मंथन किया है. उसे पता है कि विधानसभा चुनाव में, लोकसभा चुनाव की तरह अत्यंत पिछड़ों को अपने साथ बनाये रखना बड़ी चुनौती होगी. कुछ जानकार यह भी मानते हैं कि भाजपा, हो सकता है कि बिहार प्रदेश की कमान किसी अत्यंत पिछड़े के हाथों में थमा सकती है.
ऐसे में राजद के लिये यह जरूरी है कि वह अत्यंत पिछड़े युवा नेताओं के साथ इस वर्ग के जन-जन को खुद से जोड़े. ऐसा माना जा रहा है कि तेजस्वी यादव इस रणनीति पर काम भी कर रहे हैं. निकट भविष्य में वह अपनी इस रणनीति को व्यवहारिक रूप भी दे सकते हैं.