SaatRang : जिंदा है बुद्ध, गया की दलित बस्ती में हलचल

ढाई हजार साल पहले बुद्ध ने एक क्रांति की थी। जिस विचार के खिलाफ वे लड़े, कालांतर में वही हावी हो गया। अब फिर बुद्ध दलित बस्तियों में पहुंचे।

मूल निवासी संघ बिहार में बुद्ध को किताबों से निकाल कर लोगों के जीवन में पहुंचाने का प्रयास कर रहा है। जो काम डॉ. आंबोडकर ने 1956 में महाराष्ट्र में किया, 65 साल बाद वही काम मूल निवासी संघ और उससे जुड़े बौद्ध धर्मावलंबी बिहार की दलित बस्तियों में कर रहे हैं।

गया जिले के नीमचक बथानी के बंडी मनियारा के रहनेवाले शिक्षक संतोष पासवान के पिता का एक अगस्त को देहांत हो गया। संतोष ने केश नहीं छिलवाया। लोग बहुत नाराज हुए। लोग सोच रहे थे कि चलो, बढ़िया से श्राद्ध-भोज कर दे। लोग मान रहे थे कि कई तरह की मिठाई बनेगी, लेकिन संतोष ने श्राद्ध भोज के औचित्य पर गांव वालों से चर्चा की। कहा, क्या किसी की मृत्यु पर पांच मिठाइयों के साथ भोज देना, भोज खाना उचित है? गांववाले यह सुनकर बेहद नाराज हुए। लेकिन संतोष ने बात जारी रखी। बताया कि वे पिता की याद में श्रद्धांजलि सभा, पौधा रोपण, बच्चों को किताब-कॉपी और गरीब महिलाओं को साड़ी दान करना चाहते हैं। कई दिनों के प्रयास के बाद कुछ लोग समहत हुए।

11 अगस्त को श्रद्धांजलि सभा हुई। संतोष ने इसकी तैयारी की। गरीब महिलाओं की सूची तैयार की। किताब-कॉपी खरीदी। उनकी दृढ़ता और तैयारी देखकर श्रद्धांजलि सभा में भीड़ उमड़ पड़ी। आज पूरे इलाके में यह कार्यक्रम चर्चा का विषय बना हुआ है। कुछ समर्थन में, कुछ विरोध में। संतोष कहते हैं हमने गांव के ठहरे हुए पानी में नए विचार और नए व्यवहार का एक छोटा कंकड़ फेंका है, हम देख रहा है अब तक ‘हल्फा’ (तरंग) उठ रहा है।

कार्यक्रम में पटना से पूर्व आईएएस और बौद्ध दर्शन के प्रचार में लगे बुद्ध शरण हंस, बामसेफ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष महेंद्र राय, रवि कुमार यादव, डॉ. यशपाल, जया यशपाल, दिलीप कुमार यादव, नरेश यादव, रंजीत पासवान, शिव कुमार मांझी, चंद्रमौलि प्रसाद, सुरेश मांझी शामिल हुए।

संतोष ने पिता की याद में पीपल, आम और बड़गद के पांच पौधे लगाए। 300 बच्चों को कॉपी-किताब और कलम दी। 100 गरीब महिलाओं को साड़ी दी। मंच पर बुद्ध, आंबेडकर और उनके पिता की तस्वीर लगी थी। पंचशील जलाने (मोमबत्ती) जलाने के साथ कार्यक्रम की शुरुआत हुई। फिर वक्ताओं ने अपनी बात रखी। अंत में सबको खीर प्रसाद दिया गया।

सारे वक्ताओं का जोर अपने जीवन में सुधार करने, बच्चों को पढ़ाने, रोजगार करने पर ही था। कहा, श्राद्ध भोज से समाज को कोई फायदा नहीं होता। कई बार परिवार कर्ज में डूब जाता है। बुद्ध शरण हंस ने कहा कि गांव में दो ही तरह के लोग जाते हैं। एक तो यज्ञ कारने के नाम पर चंदा लेनेवाले तथा दूसरे चुनाव के समय नेता। गांवों के गरीबों के जीवन में बदलाव के लिए कोई नहीं जाता।

बुद्ध शरण हंस ने कहा कि पहले लोग धोती पहनते थे अब धोती छोड़ दी। अब पैंट पहनते हैं। खेत जोतते हुए भी पैंट पहनते हैं। तो समाज में रूढ़ि क्यों नहीं छोड़ सकते। वे बताते हैं कि इस साल मूल निवासी संघ इस तरह के छह कार्यक्रम कर चुका है।

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बिहार बुद्ध की प्रयोग स्थली थी। उन्होंने ब्राह्मणवाद, स्वर्ग-नरक, भाग्य में लिखा वही होगा जैसी धारणाओं के खिलाफ क्रांति की। बताया कि दुख है, दुख का कारण है, दुख का निदान भी है। उन्होंने खुद को ईश्वर का दूत या अवतार नहीं कहा, बल्कि जीने का तरीका बताया। दुनिया का हर धर्म श्रद्धा की मांग करता है, उन्होंने इसे भी खारिज किया। कहा, खुद अनुभव करो, सही लगे तभी हमारी बात मानो।

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