तालिबान पर कौन खुश, कौन नाराज देश में छिड़ी बहस
अफगानिस्तान में तालिबान शासन कायम हो गया है। इसके साथ ही भारत में बहस छिड़ गई है। आइए, देखते हैं कितने तरह के सवाल उठ रहे हैं।
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अफगानिस्तान की हालत खराब है। वहां भगदड़ मची है। अभी एनडीटीवी के पत्रकार उमाशंकर सिंह ने एक वीडियो ट्वीट किया है, जिसमें दो या तीन लोग उड़ते हुए हवाई जहाज से नीचे गिर रहे हैं। ये लोग अफगानिस्तान से बाहर जानेवाले विमान में जगह नहीं मिलने पर उसके बाहरी हिस्से में सवार हो गए थे।
अफगानिस्तान पर तालिबान का पूरा कब्जा हो गया है। इसके साथ ही भारत में सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई है। बड़ी संख्या में लोग तालिबान से नाराजगी दिखा रहे हैं। लेकिन इनमें दो तरह के लोग हैं। कुछ ऐसे भी हैं, जो भारत में धार्मिक कट्टरता के पक्षधर हैं, लेकिन तालिबानी कट्टरता के खिलाफ हैं। भारत में मुल्ले काटे जाएंगे जैसे उग्र नारे का अगर-मगर करके बचाव करते हैं, इन जहर उगलनेवालों की रिहाई के लिए हैशटैग चलाते हैं, लेकिन तालिबान का विरोध करते हैं।
लेखक अशोक कुमार पांडेय ने ट्वीट किया- जिन्हें हिंदुस्तानी मुसलमानों से नफ़रत है उन्हें अफ़ग़ान नागरिकों से हमदर्दी का ढोंग नहीं रचना चाहिए। एक अन्य ट्वीट में उन्होंने कहा-जो लोग आज बर्बर तालिबान के अफ़ग़ानिस्तान पर क़ब्ज़े पर ख़ुश हो रहे हैं, उन्हें भारत में अल्पसंख्यकों के साथ हो रही हिंसा पर दुखी होने का कोई हक़ नहीं है। वे असल में साम्प्रदायिकता से उतने ही ग्रस्त हैं। वे असल में भीतर से उतने ही हिंसक हैं।
द लल्लन टॉप के असिस्टेंट एडिटर मुबारक ने कहा-इफ, बट, लेकिन, किंतु, परंतु लगाकर तालिबान का दबी ज़ुबान में समर्थन करने वाले तमाम लोग मानवता के बेसिक पैमाने पर फेल हैं। ‘अमेरिका ज़िम्मेदार है’, ‘अपने मुल्क के अतिवादी देख लो’ जैसी बातें कहने का ये वक्त नहीं। अभी तो एक सुर में तालिबान का विरोध कीजिए. अगर आप ये नहीं कर पा रहे… तो आप भी वही हैं, जिसकी मुख़ालफ़त का आपका दावा है। आपकी करुणा सिलेक्टिव है। आपको भी सिर्फ स्कोर सेटल करना है। आपको भी मनुष्य से पहले मज़हब दिखता है। आप भी उस लानत के हकदार हैं, जो तालिबान जैसी घिनौनी सोच के हिस्से आनी चाहिए। आप किसी समाधान का हिस्सा नहीं, आप खुद समस्या हैं।
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