टुना पांडे का विद्रोह सवर्णों पर मोदी मैजिक फीका होने का नतीजा

भाजपा के टुना पांडे ने जिस तरह विद्रोह के तेवर दिखाए, क्या वह उनकी सनक भर है या मोदी मैजिक फीका होने का नतीजा है? चार सवाल और भी हैं।

कुमार अनिल

भाजपा के एमएलसी टुना पांडे ने चार दिन पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को परिस्थितियों (मजबूरी) का मुख्यमंत्री बताकर तहलका मचा दिया। आज भाजपा ने उन्हें पार्टी से निलंबित कर दिया। लेकिन सवाल खत्म नहीं हुआ है और न ही इस बात की कोई गारंटी है कि कल फिर भाजपा का कोई सवर्ण नेता नीतीश के खिलाफ बयान नहीं देगा।

ऊपर से देखने पर लगता है कि टुना पांडे सिर्फ नीतीश कुमार से नाराज हैं। भाजपा नेतृत्व ने इसे इसी रूप में लिया है। जदयू ने कहा कि उनका शराब का धंधा था, जो बंद हो गया, इसीलिए वे नीतीश से बौखलाए हैं। लेकिन यहां तीन सवाल फिर भी अनुत्तरित हैं। पहला, अगर शराबबंदी से टुना पांडे बौखलाए हैं, तो भाजपा से विद्रोह करके उन्हें क्या लाभ होगा? शराबबंदी तो फिर भी लागू ही है। दूसरा सवाल यह है कि टुना पांडे को विद्रोह करने के लिए आखिर शक्ति कहां से मिल रही है और तीसरा सवाल यह है कि उन्होंने शहाबुद्दीन की तरफदारी क्यों की? एक चौथा सवाल भी हो सकता है कि क्या पांडे को यह आभास है कि राज्य में सत्ता परिवर्तन होनेवाला है?

इतना स्प्षट है कि टुना पांडे के बारे में जदयू ने जो कहा, वह अतार्किक है। विद्रोह की वजह शराबबंदी नहीं हो सकती, क्योंकि नीतीश शराबबंदी से पीछे हटनेवाले नहीं हैं। दूसरे सवाल को देखें कि आखिर टुना पांडे को हमलावर होने की शक्ति कहां से मिल रही है। इसका एक जवाब यह है कि उत्तर प्रदेश की तरह बिहार में भी सवर्ण खासकर ब्राह्मण समुदाय में नाराजगी बढ़ी है।

मोदी को विष्णु का अवतार मानने वाले कोविड में बदइंतजामी और नौकरी-रोजगार खत्म होने से नाराज हैं। यूपी में माना जा रहा है कि बड़ी संख्या में विधायक मुख्यमंत्री योगी से नाराज हैं। विधायकों की बात अफसर सुनते नहीं। कई विधायक अपने खास लोगों को ऑक्सीजन तक नहीं दिला पाए। यही शिकायत बिहार में भी छन-छनकर आती रही है। यह भी कई सर्वे में आ चुका है कि मोदी की लोकप्रियता घटी है। टुना को यहीं से शक्ति मिल रही है।

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टुना पांडे ने शहाबुद्दीन का नाम जिस तरह सम्मान से लिया, वह कई इलाकों में बदलते राजनीतिक समीकरण का संकेत हैं। टुना पांडे को लग रहा होगा कि सवर्ण नाराज हैं, इसीलिए एक स्तर पर राजद और उसके सामाजिक आधार से निकटता बनाई जाे, ताकि भविष्य की राजनीति को बेहतर किया जा सके।

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इसी से जुड़ा है चौथा सवाल। राजनीति हलकों में यह माना जा रहा है कि एनडीए वह नहीं है, जो 2010 में था। इसकी चाबी हम और वीआईपी जैसे छोटे दलों के पास है। कब भी स्थितियां बदल सकती हैं। आषाढ़ के बारे में कहा जाता है कि कब आकाश साफ रहेगा और कब बादल छा जाएंगे, कहा नहीं जा सकता।

By Editor


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