साहित्य के एकांतिक साधक और आदर्श पत्रकार थे डा दीनानाथ शरण 

साहित्य सम्मेलन उनके नाम से देगा ११००० रु का पुरस्कार 

पुण्यस्मृति में आयोजित वहाँ भव्य कविसम्मेलन

पटना,४ दिसम्बर । डा दीनानाथ शरण हिन्दी के कुछ उन थोड़े से मनीषी साहित्यकारों में थेजो यश की कामना से दूरसाहित्य की एकांतिक सेवा करते रहे। वे कवि का एक विराट हृदय रखते थे। मनुष्यता और जीवन– मूल्यों की कविताएँ रचते रहे। एक सजग कवि के रूप में उन्होंने पीड़ितों को स्वर दिए और शोषण तथा पाखंड का मर्दन किया। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन इसी वर्ष से उनके नाम से नामित ११००० रु का पुरस्कार आरंभ कर रहा हैजो नवोदित साहित्यकारों को दिया जाएगा।

यह बातें आज यहाँडा दीनानाथ शरण स्मृतिन्यास के तत्त्वावधान मेंडा शरण के प्रथम पुण्यस्मरण दिवस पर बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित कवि सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए,सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा किशरण जी की ख्याति उनके द्वारा प्रणीत आलोचनाग्रंथ हिन्दी काव्य में छायावाद‘ से हुई। वे साहित्य के इस कालखंड के विशेषज्ञ के रूप में जाने जाते थे। उन्होंने नेपाली साहित्य का इतिहास भी लिखा और साहित्य की सभी विधाओं,कविताकहानी,संस्मरणपन्यास,ललित निबंधभेंटवार्ता,शोधनिबंध में भी अधिकार पूर्वक लिखा।

समारोह का उद्घाटन करते हुएहिन्दी प्रगति समितिबिहार के अध्यक्ष और वरिष्ठ कवि श्री सत्य नारायण ने कहा किडा शरण एक बड़े लेखक और समालोचक थे। दोनों हीं विधाओं में उन्हें विशिष्टता प्राप्त थी। इसलिए यह कहना कठिन है कि वे लेखक बड़े थे या समालोचक। वे एक निर्भीक और निर्लिप्त समालोचक तथा एक संवेदनशील कवि थे। सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्रनाथ गुप्तडा मधु वर्माराज भवन सिंहडा मेहता नगेंद्र सिंहफखरुद्दीन आरफ़ीडा आशा कुमारी,डा विनय कुमार विष्णुपुरी तथा डा मनोहर प्रसाद जाखनबाल ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

इस अवसर पर एक भव्य कविसम्मेलन का भी आयोजन हुआजिसमें नगर के नामचीन कवियों और कवयित्रियों ने अनेक रंग और रस की कविताओं से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। सभी कवियों और कवयित्रियों कोन्यास के सचिव शंभु अमिताभ ने पुष्पहार और अंगवस्त्रम देकर सम्मानित किया।

कविसम्मेलन का आरंभ राज कुमार प्रेमी ने वाणीवंदना से किया। वरिष्ठ कवि घनश्याम ने कहा– “ये सफ़र कामयाब कब होगा?/ और पूरा भी खाब कब होगा?/ बेगुनाहों के ख़ून का कहिए?/ साफ़ आख़िर हिसाब कब होगा?। डा शंकर प्रसाद ने अपने गीत का सस्वर पाठ करते हुए कहा कि, “अब कौन ज़माने में खताबार नही हैअफ़सोस कोई मेरा तरफ़दार नही है”।

शायरा आराधना प्रसाद का कहना था कि, “दो पहर की धूप काली हो गईरात कुछ ऐसी निराली हो गईचाँद का भी रंग फीका पड़ गया/ख़ुशनुमा पीतल की थाली हो गई। समीर परिमल ने कहा कि, ‘तुम्हारे झूठ के कोहरे में सिमटा है जहाँ साराहमारी सच बयानी भी किसी दिन रंग लाएगी। डा शरण के छोटे पुत्र अजिताभ द्वारा अमेरिका से भेजे गए एक गीत का पाठ शंभु अजिताभ ने किया। 

वरिष्ठ कवि मधुरेश नारायणप्रो डा मंजू दूबेडा सुलक्ष्मी कुमारीश्री भगवान पाण्डेय निरंकुश‘,बच्चा ठाकुरआचार्य आनंद किशोर शास्त्रीराज कुमार प्रेमीजय प्रकाश पुजारीशुभचंद्र सिन्हासच्चिदानंद सिन्हाशंकर शरण आर्यप्रभात धवन,हरेंद्र सिन्हा,कामेश्वर कैमुरी ,श्रीकांत व्यास,राम किशोर सिंह विरागीआदि कवियों ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवादज्ञापन डा नागेश्वर यादव ने किया।

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