ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार ने  पटना में मंगलवार को कहा कि ‘साहित्य’ से ही समाज को दिशा और चेतना मिलती है। बिहार की धरती रत्न-गर्भा है। इसने साहित्य-संसार को अनेक महापुरुष दिए हैं। साहित्य सम्मेलन को नए कवियों साहित्यकारों को भी आगे बढ़ाने का कार्य करना चाहिए। ये साहित्यकार ही नए बिहार के निर्माण मे अपना योगदान दे सकते हैं। हम सबको मिलकर प्रदेश की उन्नति मे आगे आना चाहिए

यह बातें आज यहाँ हिन्दी साहित्य सम्मेलन मे, वयोवृद्ध साहित्य-सेवी कैलाश चौधरी की पाँच पुस्तकों;- ‘रॉम रॉम का सरगम’, ‘सरहद की चिगारी’, ‘मागधी गीत’, ‘प्राण-अपान की धारा’ तथा ‘आत्म-कथा’ का लोकार्पण करते हुए, बिहार के ग्रामीण विकास मंत्री श्रावण कुमार ने कही। श्री कुमार ने लेखक श्री चौधरी के प्रति अपनी शुभकामनाएँ देते हुए ऊन्हे सामाजिक सरोकारों से जुड़े एक मीठे स्वभाव का साहित्यकार बताया।

      कैलाश चौधरी की पाँच पुस्तकों का हुआ विमोचन

 

समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन-अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि, समाज के व्यापक हित की भावना से पूरित लेखक ही, स्थाई साहित्य का सृजन कर सकता है। मल से मलिन मन से, मात्र शब्दों के मायाजाल पसार कर साहित्यकार नही हुआ जा सकता। एक साहित्यकार के शब्दों मे ही नही, आचरण और व्यवहार मे भी‘साहित्य’दिखना चाहिए।‘साहित्य’वही है, जिसमे समाज का हित अंतर्निहित हो।

उन्होने कहा कि लोकार्पित पुस्तकों के लेखक कैलाश चौधरी, कोमल-भावों से युक्त शुद्ध-मन से रचना-कर्म मे लीन रहने वाले एकांतिक-साधक हैं। गद्य और पद्य, दोनोंमे ही समान क्षमता से लिख रहें हैं। इनकी रचनाओं का मूल-स्वर अध्यात्म और राष्ट्रीयता है। लोकार्पित पुस्तकों से अवश्य ही हिन्दी-साहित्य को समृद्धि प्राप्त होगी और पाठकगण लाभान्वित होंगे।

इसके पूर्व अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेन्द्र नाथ गुप्त ने कहा कि लेखक ने अपने साहित्यिक दायित्व को बहुत ही निष्ठा से निभाया है।

अपने कृतज्ञता-ज्ञापन के क्रम मे लोकार्पित पुस्तकों के रचनाकार श्री चौधरी ने अपनी काव्य-पुस्तक से तीन प्रतिनिधि रचनाओं का पाठ भी किया।

सम्मेलन के उपाध्यक्ष पं शिवदत्त मिश्र, डा शंकर प्रसाद, सुभाष चंद्र किंकर, डा मेहता नगेन्द्र सिंह, श्री हरे राम, राज कुमार प्रेमी, आचारी आनंद किशोर शास्त्री, विश्व मोहन चौधरी संत, डा बी एन विश्वकर्मा, बाँके बिहारी साव, ओमप्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश’, अकिंचन राही, चंद्रदीप प्रसाद, प्रो राम सुखित वर्मा, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, रानी श्रीवास्तव, डाशालिनी पाण्डेय, कृष्ण मोहन प्रसाद, जगदीश्वर प्रसाद सिंह, राम नाम नारायण महाश्रेष्ठ तथा ओमप्रकाश चौधरी ने भी अपने विचार व्यक्त किए। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया।

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