जदयू के वरिष्‍ठ नेता और पूर्व मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार विधान परिषद में उत्‍पन्‍न असंसदीय स्थिति को लेकर काफी आहत हैं। उन्‍होंने कहा कि हमारे ऊपर अमर्यादित कार्य के लिए उकसाने का आरोप लगाने वालों ने हमारी 30 साल की संसदीय राजनीति को कलंकित किया है। यह आरोप झेल पाना संभव नहीं है। सभापति महोदय, हमें न्‍याय चाहिए।

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बिहार ब्‍यूरो प्रमुख

 

गुरुवार को विधान परिषद के वेल में जिस तरह से लोकतांत्रिक अधिकार की रक्षा के नाम पर लोकतंत्र का चिरहरण हुआ, वह एकदम शर्मसार करने वाली घटना है। सभापति अवधेश नारायण सिंह ने खुद कहा कि इस घटना से पूरा सदन शर्मिंदा है। लोकतांत्रिक मर्यादा कलंकित हुई है।

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लेकिन नीतीश कुमार ने सदन की कार्यवाही में जिस तरह से पूरी घटना का विस्‍तार से वर्णन किया और अपनी वेदना प्रकट की, उससे स्‍पष्‍ट होता है कि मामला काफी संवेदनशील था। अपने व्‍यवहार पर लगाए गए आरोप पर नीतीश कुमार ने कहा कि कार्यवाही का वीडियो फूटेज देख लिया जाए, अगर हमने किसी को उकसाया तो हम अपने आप को इस सदन में बैठने के लायक नहीं मानता हूं। विधानसभा, लोकसभा का सदस्‍य रहा। अभी इस सदन का सदस्‍य हूं। लेकिन आज तक किसी ने यह आरोप नहीं लगाया। उन्‍होंने भाजपा सदस्‍यों पर आरोप लगाते हुए कहा कि विपक्षी सदस्‍यों का व्‍यवहार अमर्यादित और अशोभनीय था। नीतीश कुमार ने न्‍याय की गुहार लगाते हुए कहा कि यदि हमें न्‍याय नहीं मिला तो सदन की कार्यवाही में मेरे लिए हिस्‍सा लेना संभव नहीं होगा। आक्षेप लगाने वाले आखिर किस परंपरा की शुरुआत करना चाह रहे हैं।

 

सभापति की स्‍पष्‍टवादिता

सभापति अवधेश नारायण सिंह भाजपा के विधान पार्षद हैं। उनके लिए जदयू और भाजपा दोनों को संतुलित करके चलना आवश्‍यक है। उन्‍होंने इस पूरे घटनाक्रम की चर्चा करते हुए कहा कि नीतीश कुमार पर लगाया गया आरोप निराधार है। पूर्व मुख्‍यमंत्री ने मामला तुल पकड़ते देख शांत कराने का प्रयास भी किया। सभापति ने बड़ी शालीनता के साथ यह भी स्‍वीकार किया कि इस पूरे घटनाक्रम में कहीं न कहीं मेरी भी गलती है। सदन में रहते हुए ऐसी घटना को रोक नहीं पाए। इसके लिए हम सदन से माफी मांगते हैं।

जमीन पहले से तैयार थी

विधान परिषद में जो कुछ हुआ, उसका तत्‍कालिक कारण भले मंगल पांडेय व संजय सिंह का कार्य व्‍यवहार को माना जा सकता है। लेकिन इसकी पृष्‍ठभूमि पहले से तैयार थी। रोज-रोज के कार्य संचालन में सदन के अंदर और सदन के बाहर धरना, प्रदर्शन, वाकआउट और वेल में हंगामा पार्षदों के व्‍यवहार का हिस्‍सा बन गया है। कार्यवाही से बहस गायब हो गयी है। संसदीय राजनीति से बहस गायब होगी तो उसका हिंसा ही ले सकती है। विधान परिषद की घटना उसकी परिणति भर है।

By Editor