असाधारण : आचार्यश्री चंदना जी से जुड़ने के लिए त्याग दिया तेरापंथ

जैन धर्म में चार पंथ हैं। तेरापंथ की समणी अमृत प्रज्ञा ने पंथ त्याग दिया। आचार्यश्री चंदना जी के विचार-कार्य से प्रभावित हो उनके साध्वी संघ में शामिल हुईं।

समणी अमृत प्रज्ञा। फोटो डिजिटल फर्स्ट न्यूज से साभार

कुमार अनिल

जैन परंपरा में एक विरले घटना हुई है। तेरापंथ की समणी अमृत प्रज्ञा ने तेरापंथ त्याग दिया है। वे अब वीरायतन की संस्थापिका पद्मश्री आचार्यश्री चंदना जी के साध्वी संघ में शामिल हो गई हैं। आचार्यश्री जिन्हें लोग अपनेपन से ताई मां भी कहते हैं, ने साध्वी जीवन और उसके उद्देश्य को नई परिभाषा दी है। आचार्यश्री साधु-साध्वी जीवन को सिर्फ आत्मसाधना या मोक्ष के लिए समर्पित करने तक सीमित नहीं रखतीं। वे आत्म साधना, आत्म उत्थान के साथ समाजसेवा पर जोर देती हैं। वे बार-बार कहती हैं कि भगवान महावीर ने यह नहीं कहा कि संसार छोड़कर जंगल में चले जाएं, बल्कि संसार को सुंदर बनाओ। पूरी दुनिया से मैत्री करो। प्रेम करो। अब समणी अमृत प्रज्ञा वीरायतन के माध्यम से समाज में सेवा का कार्य करेंगी।

तेरापंथ में साध्वी की ही एक श्रेणी को समणी कहा जाता है। समणी अमृत प्रज्ञा ने पंथ त्यागने से पहले तेरापंथ के प्रमुख महाश्रमण जी से इसके लिए इजाजत ली। एक बार महाश्रमण जी ने रोकने की कोशिश की, लेकिन जब दुबारा अमृत प्रज्ञा ने इजाजत मांगी, तो उन्होंने न सिर्फ इजात दी, बल्कि उनके लिए शुभकामनाएं भी प्रेषित कीं। अमृत प्रज्ञा ने भी तेरापंथ और इसके सभी आचार्यों का आभार जताया।

साध्वी अमृत प्रज्ञा ने डिजिटल फर्स्ट न्यूज को दिए इंटरव्यू में कहा कि वे संघ-विच्छेद नहीं कर रही हैं और न ही अपने गुरु से अलग हो रही हैं। उन्होंने कहा कि आचार्यों से, पंथ से बहुत कुछ सीखा। यहां आत्मसाधना पर जोर दिया जाता है। आचार्यश्री चंदना जी आत्मसाधना के साथ समाजसेवा पर जोर देती हैं। इस बात ने उन्हें बहुत प्रभावित किया। उनके विचारों को समझा। उनको कार्यों को समझा। बहुत विचार किया। आत्ममंथन किया। इसके बाद इस निर्णय पर पहुंची कि उन्हें आचार्यश्री के साथ ही काम करना है। वीरायतन में रह कर वे अपनी प्रतिभा-गुणों का समाज के लिए उपयोग कर सकती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि यहां से मुक्त होते हुए उनके मन में यहां के लिए कोई नकारात्मकता नहीं है। वे सकारात्मक हैं। बस कार्यक्षेत्र बदल लिया है।

मालूम हो कि इसी साल आचार्यश्री चंदना जी को उनकी समाजसेवा के सतत कार्यों और समाज में लाए जा रहे परिवर्तन को देखते हुए भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया। इसके बाद आचार्यश्री के देश के विभिन्न शहरों में कार्यक्रम हुए। हर जगह उन्होंने दुनिया में प्रेम और मैत्री के लिए आगे आने का आह्वान किया। वीरायतन की राजगीर सहित देश में कई शाखाएं हैं, जहां शिक्षा, स्वास्थ्य के अनेक केंद्र काम करते हैं। उन्होंने जमुई जैसे बिहार के सर्वाधिक पिछड़े क्षेत्र में, जो कभी नक्सली हिंसा का केंद्र था, वहां अहिंसा और मैत्री के सैकड़ों दूत तैयार किए हैं।

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