लोकसभा चुनाव के लिए पहले चरण के मतदान में कुछ घंटे ही बचे हैं। बिहार में पहले चरण में चार सीटों पर शुक्रवार को मतदान होगा। ये चार सीटें हैं औरंगाबाद, गया, नवादा और जमुई। 2019 में इन चारों सीटों पर एनडीए को जीत मिली थी। 2019 और इस चुनाव में क्या फर्क है, किस गठबंधन ने क्या मुद्दे उठाए, उनकी सभाएं कैसी रहीं और जनता का मूड क्या लग रहा है?

सबसे बड़ा फर्क तो यह है कि 2019 का चुनाव पुलवामा-बालाकोट की पृष्ठभूमि में हुआ था। देशभर में पाकिस्तान विरोधी भावना उग्र थी। जनता के जीवन से जुड़े मुद्दे सामने नहीं थे। इस बार पुलवामा नहीं है और विपक्ष जनता के सवाल खासकर महंगाई, बेरोजगारी को मजबूती से उठाता दिख रहा है।

पहले चरण की चार सीटों के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीन बार बिहार आए। उन्होंने चारों सीटों पर चुनावी रैली की। उनकी सभाओं में भीड़ ठीक-ठाक रही। लेकिन वह उत्साह गायब था, जो 2019 में हर सभा में दिखता था। तब भीड़ से मोदी-मोदी के नारे लगते थे। इस बार ऐसा कुछ नहीं था। प्रधानमंत्री मोदी भी कोई नई घोषणा नहीं कर सके। वे राजद को निशाने पर लेते रहे। वही पुराना जंगल राज का आरोप लगाते रहे। उनके प्रचार में पांच किलो अनाज योजना को जारी रखने पर जोर था। दो सभाओं में नीतीश कुमार थे। एक सभा में उन्होंने चार सौ पार के बदले चार हजार सांसद जिताने की अपील कर दी।

इधर विपक्षी गठबंधन के प्रचार की कमान तेजस्वी यादव ने संभाल रखी है। पहले फेज की चारों सीटों पर वीआईपी के मुकेश सहनी तेजस्वी यादव के साथ रहे। सहनी के साथ आने से विपक्ष को नई ताकत मिली है। तेजस्वी की सभाएं आम तौर से इस गर्मी के बावजूद खुले में हुईं। सभाओं में भीड़ खासी देखी गई और बड़ा अंतर यह दिखा कि विपक्ष की सभाओं में भीड़ उत्साहित दिखी। लोगों में जोश दिखा। मुद्दे की बात करें, तो तेजस्वी यादव ने रोजगार, महंगाई, पलायन का मुद्दा उठाया। प्रधानमंत्री ने बिहार को दस वर्षों में क्या दिया, बिहार ने उन्हें झोली भर कर सांसद दिए, लेकिन बिहार को बदले में बेरोजगारी, पलायन और महंगाई मिली।

सामाजिक समीकरणों के लिहाज से देखें इन चारों सीटों में दो पर राजद ने कुशवाहा प्रत्याशी दिए तथा दो आरक्षित सीटों में एक पर पासवान तथा एक पर रविदास प्रत्याशी दिए। कुशवाहा प्रत्याशी देकर राजद ने चौंकाया। कुशवाहा समाज राजद को समर्थन देता भी दिखा है।

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नवादा में राजद और भाजपा दोनों ही दल के सामाजिक आधार से दो-दो प्रत्याशी उतर गए। राजवल्लभ यादव परिवार ने राजद से बगावत कर दी, तो गुंजन सिंह भाजपा का वोट काट रहे थे। अंतिम सभाओं में तेजस्वी यादव ने राजद से बगावत करने वालों के प्रति सख्ती दिखाई तथा समाज को अपनी तरफ करने की कोशिश की, जिसका असर भी दिखा। नवादा से मिल रही जानकारी के अनुसार राजद अपना सामाजिक आधार एकजुट रखने में कामयाब रहा। बिहार के राजनीतिक गलियारों में माना जा रहा है कि इंडिया गठबंधन फायदे में है।

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