शाह अलीमुद्दीन बल्ख़ी के जनाजे में उमड़ी भारी भीड़, फतुहा कब्रिस्तान में सुपुर्दे खाक

शाह अलीमुद्दीन बल्ख़ी के पहले जनाजे में उमड़ी भारी भीड़, दूसरा जनाजा सबलपुर मदरसा में

नामवर इस्लामी मुबल्लिग व आलिम ए दीन शाह अलीमुद्दीन बल्खी ( Alimuddin Balkhi) के जनाजे में भारी भीड़ ने शिरकत की. जनाजे की नमाज पटना के आलमगंज का शक्काटोली के मैदान में  मंगलवार को सुबह 9 बजे पढ़ी गयी.

पटना के गवर्नमेंट तिब्बी कॉलेज के प्रिंसिपल रहे मौलाना बल्खी ने करीब पांच दशक तक इमामत की जिम्मेदारी अंजाम दी थी.

वह एक बेहतरीन तिब्बी डॉक्टर, इस्लामी स्कॉलर के साथ दीनी व समाजी मुद्दों पर निर्णायक राय रखने के लिए जाने जाते थे.  वह फतुहा स्थित खानकाह बल्खिया के सज्जादानशीं भी थे.

मौलाना  की आलमगंज मस्जिद में जुमे की तकरीर काफी प्रभावशाली हुआ करती थी.

वह समसामयिक मुद्दों के समाधान में इस्लामी दृष्टिकोण को तर्कपूर्ण ढंग से पेश करने में महारत रखते थे. गवर्नमेंट तिब्बी कालेज से रिटायरमेंट के बाद वह तिब्बी तरीका ए इलाज से मरीजों की सेवा भी करते थे.

काबिले जिक्र है कि मौलाना बल्खी के निधन से करीब एक हफ्ता पहले उनकी पत्नी का निधन हो गया था.

मौलाना ब ल्खी 96 साल के थे

6 वर्षीय मौलाना पटना स्थित राजकीय तिब्बी कॉलेज में प्राचार्य के पद से 1986 में सेवानिवृत्त हुए थे। वह खानकाह बलखिया फिरदौसिया फतुहा के सज्जादानशीन थे। मौलाना के जनाजे की नमाज मंगलवार की सुबह आलमगंज के शक्का टोली स्थित सिडनी ग्राउंड में उनके बड़े पुत्र डॉक्टर सैयद शाह मुजफ्फर बलखी ने पढ़ाई। इसमें बड़ी संख्या में शहर के लोग मौजूद हुए।

फतुहा स्थित खानकाह में मौलाना के दूसरे पुत्र सय्यद शाह नसर बल्खी ने पढ़ाई। खानकाह स्थित कब्रिस्तान में मौलाना को सुपुर्द ए खाक किया गया। देश के स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रहने के साथ ही मौलाना ने समाज के हर धर्म व तबके के लोगों का मार्गदर्शन किया।

जीवन भर सच्चाई और इंसानियत की रक्षा के लिए काम करते रहे। अंतिम यात्रा में खानकाह मुनएमिया के सज्जादानशीं मौलाना प्रोफ़ेसर सय्यद शमीमउद्दीन अहमद मुनएमि, जमात इस्लामी हिंद बिहार के अध्यक्ष मौलाना रिजवान अहमद इस्लाही, डॉ रेहान गनी, मोहम्मद शाहिद, मोहम्मद अनवर, सरफराज आलम, सलमान गनी समेत अन्य थे।

 

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