शायद अकेली ताई मां बोलीं-होली में पर्यावरण नहीं, क्रोध नष्ट करें

बिहार के अखबार हर साल पर्यावरण बचाने के लिए सूखी होली का खूब महत्व बताते थे। इस बार उनकी आवाज बंद है। पद्मश्री आचार्यश्री चंदना जी ने कही बड़ी बात।

कुमार अनिल

पद्मश्री आचार्यश्री चंदना जी (ताई मां) ने कहा कि होली के अवसर पर आग में पर्यावरण को नष्ट नहीं करना है, बल्कि हमारे क्रोध, हमारी ईर्ष्या, हमारे द्वेष को हमें जलाना है। हमारे जीवन में ऐसे शुभ रंग आएं,जिन्हें देखकर दूसरों की आंखें तृप्त हो सकें।

पद्मश्री आचार्यश्री चंदना जी ने जो बात कही, उसे कहने का साहस आज कितने लोगों में है? आज क्रोध और नफरत टैक्स फ्री हो गया है। सोशल मीडिया में मुफ्त मिल रहे हैं। प्रेम, सद्भाव, भाईचारे की बात करना कठिन होता जा रहा है। दिवाली पर पटाखे न फोड़ने पर ट्रोल किए जाते हैं लोग, सोचिए, ढाई हजार साल पहले जब भगवान महावीर ने बलि प्रथा के खिलाफ, हिंसा के खिलाफ अहिंसा की बात की होगी, तब उन्हें क्या-क्या झेलना पड़ा होगा?

कुछ समय पहले तक दैनिक भास्कर हर साल पहले पन्ने पर तिलक होली, सूखी होली का खूब महत्व बताता था। पानी का महत्व बताता था। आज का दैनिक भास्कर देख लें, आपको खोजना पड़ेगा। पटना संस्करण के पहले पन्ने पर इस संबंध में कुछ नहीं है। पांच नंबर पेज पर अखबार का इन-हाउस एक छोटा-सा विज्ञापन है। यही हाल दूसरे अखबारों का भी है। ऐसा क्यों हुआ?

दुनिया में औरत पुस्तक की लेखिका सुजाता ने कहा- होली अकेला ऐसा त्यौहार है जिसके अतीत में हिंदू-मुस्लिम एकता और सौहार्द्र के उदाहरण भरे पड़े हैं। खुसरो ने गाया “आज रंग है री..” तो बुल्लेशाह ने कहा “होली खेलूँगी कह बिस्मिल्लाह..” मुग़लों के दरबार में होली खेलने की बातें सुनते हैं। इस धरोहर को संजोना होगा।

रितंभरा ने वर्ष 1635 की एक पेंटिंग शेयर की है, जिसमें मुगल बादशाह जहांगीर के दरबार में होली खेली जा रही है। पेंटिंग के साथ उन्होंने लिखा-सबको हैप्पी होली। सोशल मीडिया में आज कई महिला एक्टिविस्ट और लेखिकाएं होली की आत्मा-प्रेम-भाईचारा को सामने लाते दिखीं।

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