भारत रत्न उस्ताद बिसमिल्लाह खान की पुण्य तिथि पर वरिष्ठ पत्रकार निराला उनकी शख्सियत के एक पहलू को याद कर रहे हैं जिसमें वह बता रहे हैं कि बिहार के इस रत्न को बिहार ने कैसे भुला दिया लेकिन बनारस के गंगा तट पर उनके रियाज ने अंतरराष्ट्रीय ख्याति दिला दी.
मेरा सवाल था
”उस्ताद आप बिहार के हैं और बिहार में…!”
बीच में ही बात काटते हुए उस्ताद का जवाब था
”मैं बनारसी हूं यार. यह जो बनारस है इसके बिना मैं रह नहीं सकता. मेरे सिर से नख तक बनारस है और कुछ नहीं. मेरी रूह में बनारस बसता है, मेरे रग—रग में बनारस का राग है.”
करीब नौ बरस पहले मिला था उस्ताद से. इंटरव्यू वास्ते. उनका यही जवाब था. वे अपने को बिहार से कनेक्ट नहीं करते थे कभी. कभी भी नहीं. बिहार है कि जबरिया स्मारिकाओं में उनको छापने के लिए उस्ताद को बिहार का बताता रहता है. असल उस्ताद इकलौते हैं भी तो बिहार के पास, जिनके नाम के आगे भारत रत्न लिख सकता है बिहार.
बिहार अपने कलाकारों का सम्मान नहीं दे सका
अब यह न समझाइयेगा कि भारत रत्न क्या होता है, वह तो कुछ नहीं होता. बल्कि इस पर सोचा जाए कि क्यों उस्ताद खुद को कभी बिहार से कनेक्ट नहीं किये? शायद वह जानते थे कि बिहार में कदर नहीं होती कला की. उस्ताद जानते होंगे कि जो बिहार अपने उन्हीं कलाकारों को और कला विधाओं को अब तक मान—सम्मान नहीं दे सका, स्थापित नहीं कर सका, जिनमें प्रबल संभावनाएं थी, वह बनारस में रहनेवाले उस्ताद को जबरिया बिहारी बनाकर रसमपूर्ति करने के अलावा और क्या कर सकेगा?
यहां बहस करने के बजाय सोचने की जरूरत है कि अगर ऐसा सोचते ही होंगे उस्ताद तो क्या गलत सोचते होंगे. आपके यहां के भिखारी ठाकुर, आपके यहां के नंदलाल बोस… कौन सा बड़ा इंस्टीट्यूशन खड़ा हुआ ऐसे महान बिहारी कलाकारों के नाम पर?
क्या है बिहार में उनके नाम पर?
बिस्मिल्ला खान के नाम पर क्या खड़ा हो सका है बिहार में अगर सिवान जिले के पंजवार गांव में चलनेवाले उस इकलौते बिस्मिलाह खान संगीत महाविद्यालय को छोड़ दें तो. और वह विश्वविद्यालय भी कोई सरकार नहीं खोली है. वह वहां के बिहार के बड़े कर्मयोगी संत घनश्याम शुकुल मास्साब ने अपनी उद्यमिता से शुरू किया था, जिसे संजय सिंह जैसे युवा साथियों ने आगे बढ़ाया. अनामी—गुमनाी में चलता है उस्ताद बिस्मिलाह खान के नाम पर चलनेवाला इकलौता संस्थान लेकिन कभी जाइये पंजवार तब पता चलेगा. एक संगीत संस्थान कैसे बदलता है इलाके को, उसकी तासीर का अंदाजा होगा. उस एक उस्ताद बिस्मिल्लाह खान संगीत महाविद्यालय ने इलाके को आंतरिक तौर पर सुंदर बनाया है. वहां की लड़कियां गाती हैं, नाचती है, संगीत पढ़कर संगीत की शिक्षिका बन रही हैं.
जो समाज अपनी बेटियों को नाचने—गाने की आजादी देने लगा है, समझिए कि वह असली वाला प्रगतिशील बन रहा है. बाद बाकि ठीक है. आज उस्ताद की पुण्यतिथि है. उनको नमन.
[highlight]सम्पादकीय नोट[/highlight]- बिसमिल्लाह खान 21 मार्च 1916 को बिहार में बक्सर के डुमराव में पैदा हुए. यहीं उनका पैतृक घर है. लेकिन उस्ताद आठ साल की उम्र में अपने मामा साथ जो बनारस गये, फिर नहीं लौटे. बनारस में ही उन्होंने 21 अगस्त 2006 को आखिरी सांस ली.