देश में सूचना का अधिकार कानून (आरटीआई) को लागू हुये 14 वर्ष हो गये हैं, लेकिन अब भी गोपनीयता की कार्य संस्कृति के कारण आरटीआई को लेकर अधिकारियों की सोच में बदलाव की रफ्तार धीमी है और इस संबंध में शीघ्र ही राज्यों की रैकिंग की सूची जारी की जायेगी।
देश में हर वर्ष 12 अक्टूबर को आरटीआई दिवस मनाया जाता है। बारह अक्टूबर 2005 से सूचना का अधिकार अधिनियम केन्द्र सरकार, सभी राज्य सरकारों, स्थानीय शहरी निकायों, पंचायती-राज संस्थाओं में लागू है। कानून बनने के बाद यह माना जा रहा था कि इससे भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी और सरकार के विभिन्न विभागों एवं क्रियाकलापों में पारदर्शिता आएगी लेकिन इस क्षेत्र में काम करने वाले संगठन ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया ने आज यहां एक रिपोर्ट जारी कर कहा कि 14 वर्ष बाद भी गोपनीयता की कार्य संस्कृति के कारण अधिकारियों की सोच में परिवर्तन की रफ़्तार धीमी है। आरटीआई के पालन को लेकर जारी वैश्रिवक रैकिंग में भारत की रैकिंग नीचे गिरकर अब सातवें पायदान पर पहुंच गई हैं, जबकि पहले भारत का स्थान दूसरा था। गौर करने वाली बात यह है कि जिन देशों को भारत से ऊपर स्थान मिला हैं, उनमें से ज्यादातर देशों ने भारत के बाद इस कानून को अपने यहाँ लागू किया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 14 वर्षों में देश के कुल 3.02 करोड़ (लगभग 2.25 प्रतिशत आबादी) लोगों ने सूचना के अधिकार का इस्तेमाल किया है। देश के सूचना आयोगों के समक्ष अब तक 21,32,673 द्वितीय अपील एवं शिकायत दर्ज किये गए है। आरटीआई के तहत केन्द्रीय स्तर पर सबसे ज्यादा जानकारियां मांगी गयी। वर्ष 2005 से 2017 तक की अविध के दौरान केन्द्रीय स्तर के विभिन्न मंत्रालयों एवं विभागों से संबंधित जानकारियों के सन्दर्भ में कुल 78,93,687 आवेदन प्राप्त हुये।
आरटीआई का प्रयोग करने में कुल आवेदनों की संख्या के आधार पर पाँच अग्रणी राज्यों में महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल और गुजरात शामिल हैं। संख्या के आधार पर सबसे कम प्रयोग करने वाले राज्यों में मणिपुर, सिक्किम, मिजोरम, मेघालय तथा अरुणाचल प्रदेश का स्थान है। राज्य में जानकारियां मांगने वालों में महाराष्ट्र पहले नंबर पर है। आलोच्य अवधि के दौरान महाराष्ट्र में आरटीआई के कुल 61,80,069 आवेदन मिले। इसी अवधि में तमिलनाडु में 26,91,396 और कर्नाटक के कुल 22,78,082 लोगों ने अपने इस अधिकार का प्रयोग किया।