झारखंड कैबिनेट द्वारा लालू प्रसाद को जेल से रिहा करने संबंधी फैसला नहीं होने के बावजूद उनकी रिहाई की संभावनायें बनी हुई.
इस मामले में झारखंड सरकार कुछ रणनीतिक व तकनीकि पेंच सुलझने के इंतजार में है.
संजय वर्मा
दर असल सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में जब ये कहा था कि कोरोना संकट के मद्देनजर 70 साल की आयु के सजायाफ्ता या अंडर ट्रायल कैदियों को राज्य सरकारें पैरोल पर छोड़ सकती हैं. तब बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जाकर यह दलील दी कि ऐसा करने से राज्य का विधि व्यवस्था प्रभावित हो सकती है. अपराध बढ़ सकता है जिससे सरकार के समक्ष अनेक चुनौतियां खड़ी हो सकत हैं. इन दलीलों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि यह सरकार के विवेक पर है कि किसे छोड़े या किसे न छोड़े.
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय ने लालू यादव को छोड़ने का मार्ग खोल दिया है. झारखण्ड सरकार के महाधिवक्ता राजीव रंजन शनिवार तक इस संबंध में अपनी रिपोर्ट सौंप देंगे. चूंकि वह सरकार के महाधिवक्ता हैं इसलिये सरकार के मन के अनुकूल ही रिपोर्ट सौंपेंगे, ऐसा लगता है. दर असल इससे पहले कैबिनेट क बैठक में महाधिवक्ता को भी बुलाया गया था. उस बैठक में कुछ रणनीतिक कारणों से इस मुद्दे पर फैसला नहीं हो सका था. कैबिनेट की अगली बैठक संभव है कि मंगलवार को होगी तब इस पर फिर से निर्णय हो जाएगा और तब लालू यादव कुछ शर्तों के साथ पेरोल पर छोड़ दिये जायेंगे.
चारा घोटाला मामले में राष्ट्रीय जनता दल के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को 14 साल जेल की सजा हुई है. फिलहाल वह रांची के राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस के कैदी वार्ड में भर्ती हैं. इसी अस्पताल में कोरोना संक्रमित मरीजों का इलाज भी चल रहा है. यही नहीं जिस वार्ड में वह एडमिट हैं, उसी के ठीक ऊपर वाले फ्लोर में कोरोना संदिग्धों के लिए आइसोलेशन वार्ड भी बनाया गया है. सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के संदर्भ में उनको पैरोल पर रिहा करने की कवायद चल रही है.
कुछ लोगो को लग रहा कि देर क्यों हो रही. दरअसल झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार इस मामले में एक- एक कदम फूंक कर चल रही. वह जताना चाहती कि वह कांग्रेस और राजद के दबाव में रत्ती भर नही है. और इस मामले में उसे कोई हड़बड़ी भी नही है। साथ ही उसे आशंका है कि भाजपा इस मामले पर बखेड़ा खड़ा कर सकती है. कोई बखेड़ा खड़ा न करे कि हेमन्त सरकार ने ने लालू को छोड़ दिया. दर असल झारखंड की हेमंत सरकार में राजद और कांग्रेस दोनों दल शामिल हैं.
इसलिए हेमंत सोरेन सरकार इस मामले में सधी ही रणनीति से आगे बढ़ रही है. इसलिए उसका मानना है कि सरकार की किरकिरी भी ना हो और लालू पैरोल पर रिहा भी हो जायें.
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश दिया था कि कोरोणा संकट के दौरान राज्य सरकारें अंडर ट्रायल या सजायाफ्ता ऐसे कैदी जिनकी उम्र सत्तर साल के करीब हो, उन्हें पैरोल पर रिहा कर सकती है.