इर्शादुल हक, संपादक, नौकरशाही डॉट कॉम

एक चिट्ठी के कारण जदयू में तूफान आ गया है। दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने संसद में गृह मंत्री अमित शाह द्वारा बाबा साहेब डॉ. आंबेडकर के अपमान का मुद्दा उठाते हुए इस स्थिति पर विचार करने को कहा। आश्चर्य यह है कि चिट्ठी का जवाब नीतीश कुमार ने नहीं दिया, बल्कि कभी भाजपा में रह चुके जदयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा ने दिया। उनके जवाब से कई सवाल खड़े हो गए।

संजय झा के जवाब से पहला सवाल तो यही खड़ा हुआ कि जवाब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने क्यों नहीं दिया। क्या वे इतने बीमार हैं कि अब चिठ्ठी भी नहीं पढ़ सकते और जवाब भी नहीं दे सकते। दूसरा सवाल यह कि संजय झा ने अपने जवाब में अमित शाह की सराहना करते हुए राहुल गांधी की क्यों आलोचना की। केजरीवाल का जवाब देने के लिए भाजपा के तर्कों का सहारा लेने का क्या अर्थ है और कि क्या अब पार्टी पर नीतीश का नेतृत्व नहीं रहा और भाजपा से आए नेताओं ने पूरी तरह पार्टी पर कब्जा कर लिया है। राजनीतिक हलकों में यह भी चर्चा है कि नीतीश कुमार बीमार नहीं हैं, बल्कि वे भाजपा से नाराज हैं और जल्द ही कोई बड़ा निर्णय ले सकते हैं।

इन सवालों से पार्टी के भीतर भी भूचाल है। नौकरशाही डॉट कॉम को कई पार्टी कार्यकर्ताओं ने कहा कि पार्टी की स्थिति अच्छी नहीं है। पूरी पार्टी भाजपा की लाइन पर चलती दिख रही है। नीतीश कुमार ने एनडीए में रहते हुए हमेशा भाजपा से विभाजन रेखा खींच कर रखी। लेकिन आज वह विभाजन रेखा खत्म हो गई है। चाहे वक्फ संशोधन बिल हो या अब डॉ. आंबेडकर का अपमान हो।

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याद रहे केंद्रीय मंत्री ललन सिंह और संजय झा दोनों नीतीश कुमार के करीबी रहे हैं। ललन सिंह वक्फ संशोधन बिल पर जिस तरह भाजपा के पक्ष में आक्रामक हो कर बोले, उससे पूरी पार्टी में हंगामा हो गया। फिर किसी तरह मुख्यमंत्री ने पार्टी के मुस्लिम नेताओं से बात करके डैमेज कंट्रोल किया, लेकिन इस बार मामला दलितों का है और मुख्यमंत्री हस्तक्षेप करने की स्थिति में नहीं हैं। जिस प्रकार ललन सिंह और संजय झा दोनों खुल कर और आगे बढ़ कर भाजपा का समर्थन कर रहे हैं, उससे पार्टी के पूराने कार्यकर्ताओं में चिंता है। एक ने कहा कि लगता है भाजपा ने पिछले दरवाजे से पार्टी पर कब्जा कर लिया है।

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By Editor


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