नीतीश जी, गांधी से नहीं सीख सकते, तो स्तालिन से सीखें : तेजस्वी

गांधी से कोई भी सवाल कर सकता था। रोज उनके पास पत्र आते। वे रोज जवाब देते थे। उनके लिखे 31 हजार पत्र जमा हैं। लेकिन नीतीश जी तेजस्वी का जवाब ही नहीं देते।

गांधी, नेहरू, लोहिया, जेपी सभी जन नेता थे। लोग सवाल पूछते हुए पत्र भेजते थे। नेता जवाब भी देते। महात्मा गांधी के लिखे 31 हजार से ज्यादा पत्र संग्रह किए जा चुके हैं। लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री आम आदमी की बात ही छोड़िए, विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव के भी पत्रों का जवाब नहीं देते। गांधी जयंती पर उनके रास्ते पर चलने की घोषणा करना आसान है, पर चलना मुश्किल।

आज विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने फिर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र लिखा। उन्होंने शिकायत की है कि उनके पत्रों, सुझावों का जवाब भी नहीं देते नीतीश कुमार।

तेजस्वी ने अपने पत्र में एक महत्वपूर्ण सवाल उठाया है। यह भीषण महामारी है, इससे निबटने में सरकार विपक्ष का सहयोग तक नहीं ले रही। उन्होंने सभी दलों की कमेटी बनाने का सुझाव दिया, पर मुख्यमंत्री ने कमेटी नहीं बनाई। बस वे और उनके खास अधिकारी निर्णय ले रहे हैं।

गांधी से सीखना कठिन लगे, तो तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्तालिन ने भी एक अच्छा उदाहरण पेश किया है। 13 मई को सर्वदलीय मीटिंग में कोरोना पर सर्वदलीय सलाहकार कमेटी बनाने का सुझाव आया। कल स्तालीन ने 13 सदस्यों की एक कमेटी बनाई, जिसमें 12 विपक्ष के विधायक हैं। इनमें भाजपा के विधायक भी हैं। स्तालिन के इस कदम की काफी सराहना हो रही है।

तेजस्वी ने पत्र में लिखा है- आपको एक और पत्र इस आशा के साथ लिख रहा हूँ कि इसका तो मानवीय हित में आप अवश्य ही जवाब देंगे अन्यथा विगत चार वर्षों में आपने मेरे किसी पत्र का कभी कोई जवाब नहीं दिया। कई बार अचंभित भी होता हूँ कि गाँधी, लोहिया, जेपी और कर्पूरी जी की विचारधारा पर चलने का दंभ भरने वाले मुख्यमंत्री इतना अलोकतांत्रिक कैसे हो सकते है कि वो नेता विरोधी दल के पत्र का जवाब देना भी उचित नहीं समझते? यह लोकतांत्रिक परंपराओं और संसदीय प्रणाली के लिए क़तई उचित नहीं है।

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विदित हो कि लोकतंत्र के मंदिर बिहार विधानसभा में आपने ही कहा था कि स्वास्थ्य व्यवस्था, कोविड मैनेजमेंट, पर्यवेक्षण में विधानमंडल के निर्वाचित प्रतिनिधि भी अपना योगदान दे सकते है। राज्यपाल महोदय द्वारा आहूत सर्वदलीय बैठक में हमने 30 महत्वपूर्ण सुझाव रखे थे जिसमें एक सुझाव में एक स्पेशल टास्क फ़ोर्स का गठन कर Epidemiologist, Public health experts और तमाम राजनीतिक दलों के जनप्रतिनिधियों को सम्मिलित करने का प्रस्ताव था लेकिन दुर्भाग्यवश आपकी सरकार ने इसका गठन नहीं किया। शायद इससे वास्तविक आँकड़े सार्वजनिक हो जाते तथा संस्थागत भ्रष्टाचार पर अंकुश लग जाता।

जब कोई बड़ा संकट आता है तो पीड़ितों द्वारा अपना तारणहार खोजना स्वाभाविक है। आपके दल के ही लोग प्रतिदिन आधिकारिक बयान जारी कर कहते है कि मुख्यमंत्री की बजाय
नेता प्रतिपक्ष को स्वयं फ़्रंट पर रहकर कोरोना जाँच, जीवन रक्षक दवाओं, बेड, ऑक्सीजन तथा अस्पताल सुनिश्चित व सुव्यवस्थित कराने के साथ साथ कोरोना के विरुद्ध इस लड़ाई की अगुवाई करनी चाहिए। जब नेतृत्व किंकर्तव्यविमूढ़ दिखे तो अनुयायियों द्वारा नया नेतृत्व खोजा जाने लगना भी अपेक्षित है। बिहार के सत्तारूढ़ दलों द्वारा सरकारी व्यवस्था को दुरुस्त करने के बजाय नेता प्रतिपक्ष को खोजने की कवायद को जनता भी इसी दृष्टि से देख रही है।

महोदय, हम जिम्मेदार विपक्ष है तथा मैं स्वयं भी एक संवैधानिक पद पर हूँ। ऐसे में मुझे राज्य के लोगों की समस्या को जानने तथा उसके समाधान हेतु सरकार द्वारा ली जानेवाली कदमों को जानने तथा जनहित में इनकी कमियों को भी सरकार के सामने लाने का अधिकार है। लेकिन विगत वर्षो में देखा गया है कि अनेकों बार जब-जब जनहित के मुद्दों को लेकर मैं सड़क पर निकला हूँ, तब-तब मुझ पर महामारी अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है जोकि मेरे संवैधानिक कर्तव्यों का निर्वहन करने से रोकने का एक नाजीवादी विचार व प्रयास है। यह प्रजातंत्र का गला घोंटने तथा आपके हिटलरशाही रवैये का परिचायक है।

महोदय, कोविड जैसी महामारी में स्वास्थ्य विभाग की लचर अव्यवस्था एवं असंवेदनशीलता से जूझती जनता के लिए हम एवं हमारे सभी विधायकगण अपने-अपने क्षेत्रों में लोगों को आवश्यक जीवनरक्षक दवाएँ,ऑक्सीजन सिलेन्डर, बेड इत्यादि मुहैया करवा रहे है। मैं इन सारे कार्यो का स्वयं पर्यवेक्षण करना चाहता हूँ। साथ ही आपसे अपील है कि सरकार सुनिश्चित करें कि इससे रोगियों व उनके परिजनों को किसी प्रकार की असुविधा ना हो। भीड़भाड़ ना लगे। अफरातफरी ना मचे। प्रशासन व डॉक्टर अपना काम रोककर पीड़ितों को असुविधा ना होने दें।

By Editor