सचिन पायलट ने की बगावत, केजरीवाल संग जाएंगे या भाजपा संग
कांग्रेस नेतृत्व की चेतावनी के बावजूद पायलट अपनी ही पार्टी के खिलाफ अनशन पर बैठे। 3 साल पहले भी की थी बगावत। केजरीवाल संग जाएंगे या भाजपा के करीब?
कुमार अनिल
भाजपा भले ही कर्नाटक में परेशान दिख रही हो, लेकिन राजस्थान में सचिन पायलट से वह जरूर खुश होगी। कांग्रेस नेतृत्व की चेतावनी के बावजूद सचिन पायलट अपनी ही पार्टी के खिलाफ अनशन पर बैठे। उनकी मांग है कि अशोक गहलोत सरकार पिछली वसुंधरा राजे सरकार के भ्रष्टाचार की जांच कराए। वसुंधरा और वर्तमान भाजपा नेतृत्व के बीच खींचतान जगजाहिर है। इसलिए कई लोग मान रहे हैं कि पायल के अनशन से भाजपा नेतृ्तव खुश होगा और कांग्रेस नेतृत्व परेशान होगा। एक तीर से दो निशाने। उनके अनशन में जो बैनर लगा था था,उसमें खड़गे, राहुल या किसी कांग्रेस नेता का चित्र नहीं था। कांग्रेस भी लिखा हुआ नहीं था। सिर्फ महात्मा गांधी की तस्वीर थी। याद रहे तीन साल पहले भी उन्होंने पार्टी से बगावत की थी। उनके समर्थक विधायक हरियाणा के एक रिजोर्ट में जा कर जम गए थे। तब वे सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने की मांग कर रहे थे। उस समय वे उतने विधायक तोड़ पाने में सफल नहीं हुए थे और हार कर उन्हें फिर से कांग्रेस में वापसी करनी पड़ी थी।
सचिन पायलट के इस स्पष्ट विद्रोह के बाद राजनीतिक हलके में बड़ा सवाल यह घूम रहा है कि क्या वे अरविंद केजरीवाल की पार्टी आप में जाएंगे और मुख्यमंत्री पद के दावेदार के बतौर विधानसभा चुनाव लड़ेंगे या वे अलग पार्टी बना कर भाजपा से गठजोड़ कर चुनाव में उतरेंगे। याद रहे राजस्थान में इसी साल विधानसभा के चुनाव होनेवाले हैं।
राहुल गांधी के नेतृत्व में भारत जोड़ो यात्रा के दौरान भी सचिन पायलट लगातार खुद को मुख्यमंत्री बनाए जाने के लिए दबाव बना रहे थे, लेकिन तब वे भारत जोड़ो यात्रा को मिल रहे समर्थन के कारण विद्रोह पर उतारू नहीं हुए।
सचिन पायल के अनशन की चाइमिंग बहुत खास है। राहुल गांधी ने अडानी और प्रधानमंत्री मोदी के रिश्ते पर सवाल उठाया। उसके बाद उनकी लोकसभा सदस्यता गई। आवास से बाहर होना पड़ा। इससे राहुल गांधी के पक्ष में एक सहानुभूति देखी गई। इसके बाद दो तरफ से हमले हुए। गुलाम नबी आजाद ने कई आरोप लगाए और सीधे राहुल गांधी को निशाने पर लिया। फिर शरद पवार ने भी अडानी मामले में जेपीसी की विपक्ष की मांग को खारिज कर दिया। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी की डिग्री पर विवाद को भी बेकार बताया। आजाद और पवार दोनों पूर्व कांग्रेसी रहे हैं। अब सचिन पायलट ने बगावत कर दी है। इन तीनों घटनाओं से कांग्रेस और विपक्ष के सामने नई चुनौती आई है।
भाजपा यही चाहेगी कि 2024 लोकसभा चुनाव से पहले अडानी का मुद्दा खत्म हो जाए, विपक्ष एकजुट न रह सके तथा कांग्रेस के भीतर बगावत हो। अब देखना है कि राजस्थान में अशोक गहलोत किस प्रकार इस संकट का मुकाबला करते हैं। वैसे पायलट के अनशन के बीच गहलोत ने एक वीडियो जारी किया, जिसमें उन्होंने अपनी सरकार के जनहित वाले कार्यक्रमों का उल्लेख किया।
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