जदयू के प्रदेश उपाध्यक्ष व बिहार असेम्बली के पूर्व स्पीकर उदय नारायण चौधरी बगाव का झंडा बुलंद कर चुके हैं. समय समय पर पार्टी के खिलाफ जोरदार हमला बोल रहे हैं पर पार्टी का कोई नेता उनके खिलाफ न तो एक शब्द बोललने का साहस कर पा रहा है और न ही पार्टी उनके खिलाफ कोई एक्शन ले रही है.
इर्शादुल हक, एडिटर, नौकरशाहीडॉटकाम
चौधरी का ताजा बयान लालू प्रसाद को ले कर है. उन्होंने कहा है कि लालू प्रसाद के खिलाफ बदले की भावना से कार्रवाई हो रही है. उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है. उन्होंने नाम लिये बिना कहा कि लोकतंत्र में मतभेद तो होना चाहिए पर मनभेद नहीं होना चाहिए. चौधरी का यह बयान लालू प्रसाद को चारा घोटाले में दोषी करार दिये जाने की प्रतिक्रिया के रूप में देखा जा रहा है. जहां एक तरफ जदयू के प्रवक्ता चारा घोटाले में लालू प्रसाद को दोषी करार दिये जाने के अदालत के फैसले को सही ठहरा रहे हैं वहीं उसी पार्टी के नेता और असेम्बली के पूर्व स्पीकर द्वारा इस मामले में अलग लाइन ले कर पार्टी की मुश्किलें बढ़ा रहे हैं. लेकिन मजे की बात यह है कि जदयू का कोई नेता उनके खिलाफ एक बयान तक देने का साहस नहीं जुटा पा रहा.
ऐसा नहीं है कि चौधरी ने सिर्फ लालू के मुद्दे पर अपनी पार्टी से अलग लाइन ली है बल्कि उन्होंने पिछले दिनों आरक्षण के मुद्दे पर भी पार्टी को कटघरे में खड़ा कर दिया. फिर भी जदयू खामोश रहा. जदयू के दो बड़े नेता शरद यादव और अली अनवर की राज्यसभा सदस्यता खत्म कराने के बाद जदयू पहले ही नुकसान उठा चुकी है. उस पर अब एक और नेता के बगावती बयान से वह अंदर ही अंदर परेशान है.
सवाल यह है कि मुस्लिम और यादव नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करने के बाद पहले ही जदयू इन दो बड़े वोटर समुहों को नाराज कर चुका है. ऐसे में उदय नारायम जैसे बड़े दलित चेहरे के खिलाफ कार्रवाई करने से पहले वह नतीजों के नफा नुकसान को देख कर चुप्पी लगाना ही मुनासिब समझ रहा होगा. यहां यह याद रखने की बात है कि उदय नारायण के अलावा एक अन्य दलित नेता श्याम रजक भी आरक्षण के मुद्दे पर अपने दल को कटघरे में खड़ा चुके हैं. लेकिन वह बाद में इस मामले को तूल नहीं दे रहे हैं.
अब देखना है कि जदयू इन नेताओं पर क्या स्टैंड लेता है.