उर्दू अनुवादकों की नियुक्ति कर लालू का जनाधार तोड़ सकते हैं नीतीश
बिहार में 1505 उर्दू अनुवादक पदों के लिए परीक्षा हो चुकी है। अगर सीएम नीतीश कुमार जल्द रिजल्ट देकर नियुक्ति कराते हैं, तो यह लंबे समय तक याद किया जाएगा।
बिहार में उर्दू अनुवादकों की नियुक्ति पिछले 31 वर्षोें में नहीं हुई है। थाने-प्रखंड और जिला मुख्यालय से लेकर सचिवालय तक उर्दू अनुवादकों के पद दशकों से खाली हैं। उर्दू अनुवादकों के लिए 2019 में वैकेंसी निकली। इस साल फरवरी, 2021 में परीक्षा हुई, लेकिन अबतक रिजल्ट प्रकाशित होने की कोई अंतिम तिथि सरकार ने घोषित नहीं की है।
अगर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस परीक्षा का रिजल्ट जल्द प्रकाशित कराते हैं और उर्दू अनुवादकों को अपने हाथ में खुद नियुक्ति पत्र सौंपते हैं, तो इसका राज्य की राजनीति पर गहरा असर पड़ना तय है। उर्दू अनुवादकों की नियुक्ति मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की उपलब्धियों में शुमार हो जाएगा और यह दशकों तक याद किया जाएगा। न सिर्फ बिहार में, बल्कि पूरे देश में उर्दू अनुवादकों की नियुक्ति से एक अच्छा संदेश जाएगा। इस निर्णय से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और जदयू के आधार का विस्तार होना तय है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से उर्दू अनुवादकों की जल्द नियुक्ति का भरोसा इस आधार पर है कि न्याय के साथ विकास की बात करते रहे हैं। उर्दू अनुवादकों की नियुक्ति से न्याय के साथ विकास की अवधारणा को मजबूत आधार मिलेगा। इसके साथ ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर लोगों को इसलिए भी भरोसा है कि उनके अनेक निर्णयों से अल्पसंख्यकों की आर्थिक-सामाजिक-राजनीतिक हैसियत बढ़ी है।
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जब देश में एनआरसी-सीएए के नाम पर हंगामा चल रहा था, तब भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दोटूक कहा था कि बिहार में एनआरसी लागू नहीं होगा। मुख्यमंत्री पर विरोधी भी सांप्रदायिक होने का आरोप नहीं लगाते। इस पृष्ठभूमि वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अगर उर्दू अनुवादकों की जल्द नियुक्ति कराते हैं, तो पार्टी का जनाधार बढ़ना तय है। क्या मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उर्दू अनुवादकों की जल्द नियुक्ति कराएंगे?
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