SaatRang : क्रोधी-हिंसक साधु नहीं, कुसाधु, इनसे बचिए

मन ना रंगाए, रंगाए जोगी कपड़ा…। भगवान महावीर के अंतिम प्रवचन पर आधारित है उत्तराध्ययन सूत्र। वीरायतन जाएं, तो वहां की समृद्ध लाइब्रेरी में जरूर जाएं।

कुमार अनिल

कबीर की वाणी है-मन ना रंगाए, रंगाए जोगी कपड़ा…। आजकल कपड़ा रंगाए जोगिए की संख्या बढ़ गई है। हद तो यह है कि ये गेरुआ वस्त्र में हथियार उठाने, दूसरे धर्म के लोगों को मारने के लिए खुलेआम उकसा रहे हैं। क्या यही है हिंदू धर्म, क्या यही है भारत के ऋषियों-मुनियों-सिद्धों-तीर्थंकरों-बुद्धों का पथ?

वाट्सएप और यू-्ट्यूब में ऐेसे ढोंगी, अधर्मी हमारी प्रेम-मैत्री की लंबी विरासत पर कूड़ा डाल रहे हैं। सच्चे साधु की पहचान कैसे करें? आप राजगीर जाएं, तो वीरायतन की समृद्ध लाइब्रेरी में जरूर जाएं। यहां न सिर्फ महावीर और अन्य तीर्थंकरों की वाणी पर अच्छी पुस्तकें हैं, बल्कि अन्य महापुरुषों, महात्माओं की रचनाएं भी हैं। आप शोधार्थी हैं, तब तो आपके लिए यहां जाना आवस्यक ही है।

वीरायतन की लाइब्रेरी में आप पढ़ सकते हैं उत्तराध्ययन सूत्र, जो भगवान महावीर की अंतिम देशना(उपदेश) पर आधारित है। पुस्तक जैन धर्म की पहली महिला आचार्य, आचार्यश्री चंदना जी ने लिखी है। इसे उन्होंने लगभग 50 वर्ष पहले लिखी।

उत्तराध्ययन सूत्र में साधु के गुण बताए गए हैं। वैसे यह पूरी पुस्तक जीवनचर्या, आचार-व्यवहार और विश्व दृष्टिकोण देने-बतानेवाली है। चूंकि यहां हमारा विषय साधु के गुण हैं, इसलिए पुस्तक के उन्हीं अंशों की चर्चा की जा रही है।

आचार्यश्री ने भगवान महावीर के बताए उन 22 परिषहों की चर्चा की है, जो किसी भी साधु के लिए जरूरी है। परिषह का अर्थ है, वे दोष जिनसे साधु को बचना चाहिए। यहां सबकी चर्चा करना यहां संभव नहीं है।

भगवान महावीर ने वध परिषह कहा है, जिसका अर्थ है मारे-पीटे जाने पर भी साधु क्रोध न करे। यहां तक कि मन में भी क्रोध की भावना न करे। क्षमा को साधना का श्रेषठ अंग मानकर मुनिधर्म का चिंतन करे।

इन्हीं में एक है आक्रोश परिषह। कोई गाली दे, तब भी उसके प्रति क्रोध न करे। मन में भी नहीं। 22 परिषहों में खुद के लिए धन, मकान, वस्त्र, भोजन तक की मांग करने की मनाही है।

ईर्ष्या और द्वेष को से मुक्त होना साधु की शर्त तो है ही। आस्था का बाजारीकरण, राजनीतिकरण के बाद यह नया रूप ज्यादा विकृत है, जो गेरुआ वस्त्र में कहता है कि हथियार खरीदो, गोडसे बनो।

भगवान महावीर के बाद महात्मा गांधी ही ऐसे हैं, जिन्होंने भरातीय ऋषि-मुनियों की महान परंपरा सत्य, अहिंसा और मैत्री को नए संदर्भों में नई परिभाषा दी। प्रयोग किए। उनकी हत्या को सही बताने वाला साधु कैसे हो सकता है?

आचार्यश्री चंदना जी कहती हैं कि भगवान महावीर ने लोक कल्याण का रास्ता बताया। खुद भी आजीवन इसी रास्ते पर चले। अपने समय की बुराइयों से लड़ते रहे। जीवन भर घूम-घूमकर लोगों को जगाते रहे। आज भी जो सच्चे साधु हैं, उन्हें घरों से निकलकर जनता में जाना चाहिए। लोककल्याण, प्रेम, मैत्री का रास्ता बताना चाहिए।

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