बिहार की राजनीति में गेम चेंजर हो सकती है 20 लाख नौकरी

अभी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सिर्फ घोषणा की है, लेकिन इसी से भाजपा छितरा गई है। 20 लाख नौकरी बिहार की राजनीति में बड़ा बदलाव ला सकती है।

कुमार अनिल

गेम चेंजर का अर्थ होता है ऐसा कार्य जो आपके सोचने-विचारने का ढंग पूरी तरह बदल दे। राजनीति में ऐसे गेम चेंजर समय-समय पर आते रहे हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आज स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर गांधी मैदान से बिहार की जनता को संबोधित करते हुए बड़ा एलान किया। कहा, 10 लाख नौकरी दी जाएगी। इसके अतिरिक्त भी 10 लाख नौकरी दी जाएगी। यह साधाराण घोषणा नहीं है। यह बिहार की राजनीति में गेम चेंजर हो सकता है। इससे नीतीश कुमार का कद देश में काफी बढ़ जाएगा और तेजस्वी यादव के पैर डेढ़-दो दशकों के लिए मजबूती से जम जाएंगे। दोनों को हिलाना भाजपा के लिए आसान नहीं रह जाएगा।

केंद्र और कई अन्य राज्यों की तरह बिहार भी रोजगारविहीन विकास का उदाहरण रहा है। पांच हजार-दस हजार महीना कमाने के लिए भी बिहारियों को सुदूर जाना पड़ता है। बिहार लेबर सप्लाई करने वाला राज्य बन कर रह गया है। बिहार अग्निपथ योजना के खिलाफ गुस्सा देख चुका है। पिछले विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव अकेले दम पर भाजपा से ज्यादा सीट ला पाए, तो उसमें रोजगार का मुद्दा प्रधान कारण था।

नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की सरकार ने नौकरी-रोजगार के साथ ही स्वास्थ्य और कानून व्यवस्था को दुरुस्त कर दिया, तो भाजपा मुद्दाविहीन हो जाएगी। वैसे भी नीतीश कुमार के नए गठबंधन में शामिल होने की वह ठीक से आलोचना विकसित नहीं कर पाई है। विश्वासघात का आरोप जम नहीं रहा है। वह खुद भी इस शब्द में धार नहीं दे सकती। यह वही भाजपा है, जो 2017 में नीतीश कुमार के राजद से अलग होने पर पटाखे फोड़ चुकी है। तब विश्वासघात नहीं था, आज विश्वासघात है? कुल मिलाकर वह नीतीश कुमार के खिलाफ ढंग से नारा विकसित नहीं कर पा रही है।

भाजपा ले-देकर राजद के 17 साल पहले के शासन की याद दिला रही है कि राज्य में जंगल राज आ जाएगा। 2005 में कानून व्यवस्था के सवाल पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कई नीतिगत फैसले लिये थे। आज फिर कानून-व्यवस्था को बेहतर करने के लिए नीति, कार्यप्रणाली सहित हर स्तर पर बदलाव किए गए, तो भाजपा को बोलने के लिए नए मुद्दे खोजने होंगे।

20 लाख नौकरियों की घोषणा ने जहां भाजपा को परेशान कर दिया है, वहीं आम लोगों में उम्मीद जगी है। जो भाजपा कल तक 10 लाख नौकरी पर सवाल कर रही थी, आज घोषणा होते ही वह डिफेंसिव दिख रही है। अब वह पूछ रही है कि पैसा कहां से आएगा। यह सवाल ही डिफेंसिव सवाल है। दूसरी तरफ आम नौजवानों में एक उम्मीद जगी है। उन्हें नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव दोनों से उम्मीद बढ़ी है। ये कुछ काम अगर महागठबंधन सरकार कर पाई, तो बिहार के बारे में देश की धारणा बदल जाएगी। खुद बिहार के लोग भी अपने प्रदेश के बारे में भिन्न ढंग से सोचने लगेंगे। उनकी उम्मीदों को नए पंख लग जाएंगे। क्या बिहार, नए बिहार के पथ पर बढ़ चला है?

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By Editor


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