गुजरात हाई कोर्ट ने गोधरा में ट्रेन में आग लगाने के मामले में विशेष अदालत द्वारा 63 आरोपियों को बरी करने के फैसले को सही ठहराया है जबकि 11 लोगों की फांसी की सजा को भी कम करके उम्रकैद में बदल दिया है. इस फैसले से जांच की प्रक्रिया और दोषी साबित करने में जांच एजेंसियों की नाकामी पूरी तरह उजागर हो गयी है.
विशेष अदालत ने इस मामले में 20 लोगों को उम्र कैद और 11 को फांसी की सजा सुनाई थी.
2002 में गोधरा में साबरमति एक्सप्रेस में आग लगानी की घटना हुई थी इसेमें 59 लोगों की मौत हुई थी. इस घटना के बाद गुजरात में दंगा भड़क गया था जिसमें 1000 से ज्यादा लोग मारे गये थे, इनमें अधिक तर मुसलमान थे.
विशेष अदालत ने इस मामले में कुल 94 में से 63 आरोपियों को बरी कर दिया था, और कुल 31 आरोपियों को दोषी करार देकर उनमें से 11 को फांसी तथा 20 को उम्रकैद की सज़ा सुनाई थी.
मौलाना उमरी फिर हुए बरी
हाई कोर्ट के इस फैसले में एक खास बात यहा भी है कि जांच एजेंसियों ने जिन मौलाना उमरी को इस कांड का मास्टरमाइंड बताया था, उन्हें फिर बरी करने से जांच एजेंसियों की मानसिकता और नाकारापन उजागर हो गया है..
गोधरा स्टेशन पर हुई इस वारदात के बाद राज्य में बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी थी, जिसमें 1,000 से भी ज़्यादा लोग मारे गए थे. इस मामले में सभी 94 आरोपी मुस्लिम थे, और उन पर हत्या तथा षड्यंत्र रचने के आरोप थे. वर्ष 2011 में विशेष अदालत ने आगज़नी की वारदात का मास्टरमाइंड माने जाने वाले मौलवी उमरी समेत 63 लोगों को बरी कर दिया था, और हाईकोर्ट ने भी उस फैसले में कोई बदलाव नहीं किया है.