इर्शादुल हक, संपादक, नौरशाही डॉट कॉम
नीतीश दो दिनों तक दिल्ली में कैम्प करते रहे. इसी दरम्यान भाजपा ने उनके सीने में अपमान के तीन नश्तरों से वार किया. तय हुआ कि मोदी से मुलाकात होगी, मोदी नहीं मिले. फिर तय हुआ जेपी नड्डा से मिलेंगे, नहीं मुलाकात हुई. और तीसरा नश्तर बिहार भाजपा ने चुभाया. जब नीतीश पटना के लिए प्लेन पर उडान भरते, तब तक उनकी गैरमौजूदगी में भूमि सर्वे का काम डेढ़ साल के टाल कर उन्हें अपमानित कर दिया गया.
यह चूभन, यह टीस, यह अपमान अब एक नये खेल की तरफ जाता दिख रहा है.
तेजस्वी ने ऐलान कर दिया है कि वह बीबीएससी आंदोलनकारियों की मांगों के लिए नीतीश से मिलेंगे. समय तय होना है. यह कोई मामूली खबर नहीं है. क्यों ?
क्योंकि बीपीएससी आंदोलन बिहार की सियासत की धुरी है. इस आंदोलन के पर्दे के पीछे सियासी निजाम के बदलने-पलटने का खेल भी चल रहा है. भाजपा इसे समझ गयी. तभी उसमें प्रशांत किशोर की एंट्री हुई. पीके के जरिये इस आंदोलन को साबोटेज करने का खेल रचा गया. क्योंकि इस खेल के असल खिलाड़ी तेजस्वी द्वारा बिछाया गया सतरंज की बिसात है.
अब आप कहेंगे कि काहे का खेल. तो मैं कहूंगा खेल तो है. बीबीएससी आंदोलन के बहाने कटिहार से पटना ट्रेन से आन, फिर रातोंरात भागलपुर चला जाना. दर असल बताने वाले बता रहे हैं कि तेजस्वी इस बार नीतीश की सत्ता के लिए कांधा लगाने को राजी नहीं हैं. इसी लिए कह रहे हैं कि नीतीश के लिेए दरवाजा बंद है. दर असल तेजस्वी क्यों चाहेंगे कि उन्हें मुख्यमंत्री बनायें. अब नीतीश-तेजस्वी के बीच बात इसी पर अटक गयी है कि सीएम की कुर्सी तेजस्वी को सौंपों तो सोचेंगे.
खेल जारी है. देखते रहिए सतरंज के बिसात पर किस का मोहरा कारगर होता है ?
सियास्त के इस खेल का वीडियो यूट्यूब पर देखिये। लिंक कमेंट बॉक्स में