जदयू की सर्वोच्च कमेटी राष्ट्रीय कार्य समिति की बैठक से एक दिन पहले ही मुख्यमंत्री और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार दिल्ली पहुंच गए है। बैठक का एजेंडा किसी को मालूम नहीं है, लेकिन माना जा रहा है कि कोई बड़ा फैसला हो सकता है। नीतीश कुमार की खामोशी से भाजपा परेशान है। क्या नीतीश कुमार केंद्र की अपनी ही सरकार के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बिहार के लिए कोई बड़ी मांग करने वाले हैं या कोई बड़ा सांगठनिक फैसला लेंगे। पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष भी किसी नेता को बनाया जा सकता है।

29 जून को दिल्ली में जदयू की कार्य समिति की बैठक से पहले राजनीतिक हलके तथा मीडिया में तरह-तरह के चर्चे हैं। यह भी कहा जा रहा है कि भाजपा के साथ वे सहज महसूस नहीं कर रहे हैं। केंद्र में पूरा समर्थन के बाद भी कोई महत्वपूर्ण विभाग नहीं मिला। इससे जदयू समर्थकों में निराशा है। रेल मंत्रालय की उम्मीद थी ताकि एक साल के भीतर कुछ बड़े काम करके 2025 विधानसभा चुनाव से पहले अपनी स्थिति मजबूत कर सकें, लेकिन ऐसा होता हुआ दिखाई नहीं पड़ रहा है। वे बिहार विधानसभा चुनाव में नया क्या लेकर जाएंगे, यह सवाल बना हुआ है। इसके अलावा विशेष राज्य का दर्जा, विशेष पैकेज भी नहीं मिला।

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नीतीश सरकार को हाल के दिनों में सबसे बड़ा झटका आरक्षण का बढ़ा हुआ दायरा रद्द होना है। नीतीश सरकार ने जाति गणना के बाद राज्य में पिछड़े-दलितों का आरक्षण 50 प्रतिशत से बढ़ा कर 65 प्रतिशत कर दिया था, लेकिन पटना हाईकोर्ट ने इस फैसले को रद्द कर दिया। अगर केंद्र सरकार ने बिहार के 75 प्रतिशत आरक्षण को संविधान की 9 वीं अनुसूची में शामिल नहीं किया, विधानसभा चुनाव में उन्हें इसका भारी खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। विपक्ष खासकर तेजस्वी यादव ने अभी से इसे मुद्दा बनाना शुरू कर दिया है। वे 15 अगस्त से बिहार का दौरा शुरू करने जा रहे हैं, जिसमें आरक्षण बड़ा मुद्दा होगा। जदयू की सर्वोच्च बैठक में नीतीश कुमार क्या करने वाले हैं, इस पर सस्पेंस बना हुआ है और भाजपा खेमा सन्न है।

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By Editor


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